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प्रतिज्ञा सूत्र
२२३
देवता रहें हैं । यह तो वैदिक साहित्य का नमूना है । जैनधर्म का साहित्य तो भगवान् ऋषभदेव के गुणगान से सर्वथा श्रोत- प्रीत है ही । प्रत्येक पाठक इस बात से परिचित है, तः जैन ग्रन्थों से उद्धरण कर व्यर्थ हीं लेख का कलेवर क्यों बढ़ाया जाय ?
भगवान् महावीर
श्राज भगवान् महावीर को कौन नहीं जानता ? श्राज से अढ़ाई हजार वर्ष पहले भारतवर्ष में कितना भयंकर ज्ञान था, कितना तीव्र पाखण्ड था, कितना धर्म के नाम पर अत्याचार था ? इतिहास का प्रत्येक विद्यार्थी उस समय के यज्ञादि में होने वाले भयंकर हिंसा काण्डों से परिचित है । भगवान् महावीर ने ही उस समय अहिंसा धर्म की दुन्दुभि बजाई थी । कितने कर सहे, कितनी आपत्तियाँ झेलीं; किन्तु भारत की काया पलट कर ही दी । श्राध्यात्मिक क्रान्ति का सिंहनाद भारत के कोने-कोने में गूंज उठा ! भगवान् महावीर का ऋण भारतवर्ष' पर अनन्त है, असीम है ! आज हम किसी भी प्रकार से उनका ऋण यदा नहीं कर सकते । प्रभु की सेवा के लिए हमारे पास क्या है ? और वे हम से चाहते भी तो कुछ नहीं । उनके सेवक किंवा अनुयायी होने के नाते हमारा इतना ही कर्तव्य है कि हम उनके बताए हुए सदाचार के पथ पर चलें और श्रद्धा भक्ति के साथ मस्तक झुकाकर उनके श्रीचरणों में वन्दन करें ।
भगवान् महावीर का नाम पूर्णतया अन्वर्थक है । साधक जीवन के लिए आपके नाम से हो बड़ी भारी आध्यात्मिक प्रेरणा मिलती है । एक प्राचीन आचार्य भगवान् के 'वीर' नाम की व्युत्पत्ति करते हुए बड़ी ही भव्य कल्पना करते हैं
विदारयति यत्कर्म, तपसा च विराजते ।
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