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लेश्या सूत्र
भावार्थ
-कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या, - इन छहों लेश्याओं के द्वारा अर्थात् प्रथम तीन
और शुक्ल लेश्या
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धर्म - लेश्याओं का श्राचरण करने से और बाद की तीन धर्म- लेश्याओं का श्राचरण न करने से जो भी प्रतिचार लगा हो उसका प्रतिक्रमण करता हूँ |
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विवेचन
लेश्या' का संक्षिप्त अर्थ है - 'मनोवृत्ति या विचार तरंग' । उत्तराध्ययन सूत्र, भगवती सूत्र, कर्म ग्रन्थ आदि में लेश्या के सम्बन्ध में काफी विस्तृत एवं सूक्ष्म रहस्यपूर्ण चर्चा की गई है । परन्तु यहाँ इतनी सूक्ष्मता में उतरने का न तो प्रसंग ही है, और न हमारे पास समय ही । हाँ जानकारी के नाते कुछ पंक्तियाँ अवश्य लिखी जा रही हैं, जो जिज्ञासापूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं तो कुछ उपादेय अवश्य होंगी ।
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१ 'लेश्या' की व्याख्या करते हुए आचार्य जिनदास महत्तर कहते हैं कि आत्मा के जिन शुभाशुभ परिणामों के द्वारा शुभाशुभ कर्म का सश्लेष होता है, वे परिणाम लेश्या कहलाते हैं । मन, वचन और कायरूप योग के परिणाम लेश्या पदवाच्य है ।
'लिश संश्लेषणे' संलिप्यते श्रात्मा तैस्तैः परिणामान्तरैः । यथा लषेण वर्ण सम्बन्धो भवति एवं लेश्याभिरात्मनि कर्माणि संश्लिष्यंते । योग - परिणामो लेश्या | जम्हा अयोगि केवली अलेस्सो ।' श्रावश्यक चूर्णि श्री जिनदास महत्तर के उल्लेखानुसार धर्म लेश्या भी शुभ कर्म का बन्धहेतु है । फिर भी उसे जो उपादेय कहा है, उसका कारणं यह है कि आत्मा की अशुभ, शुभ और शुद्ध तीन परिणतियाँ होती हैं । शुद्ध सर्वोपरि श्रेष्ठ परिणति है । परन्तु जब तक शुद्ध में नहीं पहुँचा जाता है, जब तक पूर्ण रूप से योगों का निरोध नहीं हो पाता है, तब तक साधक के लिए अशुभ योग से हटकर शुभ योग में परिणति करना, ही श्रेयस्कर है ।