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श्रमण-सूत्र
कृष्ण लेश्या
यह मनोवृत्ति सबसे जघन्य है । कृष्णलेश्या वाले के विचार अतीव तुद्र, कर, कठोर एवं निर्दय होते हैं । अहिंसा, सत्य आदि से इसे घृणा होती है । गुण और दोष का विचार किए बिना ही सहसा कार्य में प्रवृत्त होजाता है । लोक और परलोक दोनों के ही बुरे परिणामों से नहीं डरता । वह सर्वथा अजितेन्द्रिय, भोगविलासी प्राणी होता है। वह अपने सुख से मतलब रखता है । दूसरों के जीवन का कुछ भी होउसे कोई मतलब नहीं। नील लेश्या
यह मनोवृत्ति पहली की अपेक्षा कुछ ठीक है, परन्तु उपादेय यह भी नहीं । यह अात्मा ईपालु, असहिष्णु, मायावी, निर्लज, मदाचारशून्य, रसलोलुप होता है। अपनी सुख-सुविधा में जरा भी कमी नहीं होने देता । परन्तु जिन प्राणियों के द्वारा सुख मिलता है, उनकी भी अजपोषण न्याय के अनुसार कुल मार संभाल कर लेता है । कापोत ले त्या
यह मनोवृत्ति भी दूषित है । यह व्यक्ति विचारने, बोलने और कार्य करने में वक्र होता है। अपने दोनों को ढंकता है । कठोर भाषी होता है । परन्तु अपनी सुन्य सुविधा में सहायक होने वाले प्राणियों के प्रति करुणावश नहीं, किन्तु स्वार्थवश सरक्षण का भाव रखता है । तेजोलेश्या
यह मनोवृत्ति पवित्र है। इसके होने पर मनुष्य नत्र, विचारशील, दयालु एवं धर्म में अभिरुचि रखने वाला होता है। अपनी सुखसुविधाओं को कम महत्त्व देता है और दूसरों के प्रति अधिक उदारभावना रखता है। पद्मलेश्या
झलेश्या वाले मनुष्य का जीवन कमल के समान दूसरों को
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