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भयादि-सूत्र सज्झाइए स्वाध्यायिक में
दुक्कडं = पाप न= नहीं
मि= मेरे लिए सज्झाइयं = स्वाध्याय की हो मिच्छा= मिथ्या हो तस्स- उसका
भावार्थ प्रतिक्रमण करता हूँ [ सात भय से लेकर तेतीस अाशातनाओं तक जो अतिचार लगा हो उसका] सात भय के स्थानों = कारणों से, पाठ मद के स्थानों से, नौ ब्रह्मचर्य की गुप्तियों से = उनका सम्यक पालन न करने से, दविध समा आदि श्रमण-धर्म की विराधना से
ग्यारह उपासक = श्रावक की प्रतिमा प्रतिज्ञापोंसे अर्थात् उनकी अश्रद्धा तथा विपरीत प्ररूपणा से, बारह भिन्तु की प्रतिमानों से उनकी श्रद्धा प्ररूपणा तथा प्रासेवना अच्छी तरह न करने से, तेरह क्रिया के स्थानों से अर्थात् क्रियाओं के करने से, चौदह जीवों के समूह से अर्थात् उनकी हिंसा से, पंद्रह परमाधार्मिकों से अर्थात् उन जैसा भाव या पाचरण करने से, सूत्रकृताङ्ग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के गाथा अध्ययन सहित सोलह अध्ययनों से अर्थात् तदनुसार श्राचरण न करने से, सत्तरह प्रकार के असंयम में रहने से, अट्ठारह प्रकार के अब्रह्मचर्य में वर्तने से, ज्ञातासूत्र के उन्नीस अध्ययनों से अर्थात् तदनुसार संयम में न रहने से, बीस असमाधि के स्थानों से,--
इक्कीस शवलों से, बाईस परीषहों से अर्थात् उनको सहन न करने से, सूत्र कृताङ्ग सूत्र के तेईस अध्ययनों से अर्थात् तदनुसार श्राचरण न करने से, चौबीस देवों से अर्थात् उनकी अवहेलना करने से, पाँच महाव्रतों की पच्चीस भावनाओं से अर्थात् उनका आचरण न करने से, दशा श्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प और व्यवहार-उक्त सूत्रत्रयी के छब्बीस उद्देशनकालों से अर्थात् तदनुकूल आचरण न करने से, सत्ताईस साधु के गुणों से अर्थात् उनको पूर्णतः धारण न करने से, प्राचार प्रकल्पाचा
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