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श्रमण सूत्र
(२७) घोसहीणं, (२८) सुठ्ठ दिन', (२६) दुठ्ठ पडिच्छियं, (३०) अकाले को सज्माओ, (३१) काले न कत्रो समायो, (३२) असज्झाइए. सज्माइयं, (३३) सज्झाइए. न सज्झाइयं,-- तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।
शब्दार्थ पडिकमामि - प्रतिक्रमण करता हूँ किरिया-क्रिया के सत्तहिं = सात
ठाणेहि-स्थानों से भयठाणेहि भय के स्थानों से चउद्दसहि-चौदह श्रहहिं = आठ
भूयगामेहिं-जीव-समूहों से मयहाणेहिं = मद के स्थानों से पन्नरसहि-पन्दरह नवर्हि-नौ
परमाहम्मिएहिं--परमाधार्मिकों से बंभचेर- महाचर्य की
सोलसहिं-सोलह गुत्तीहिं—गुप्तियों से
गाहा सोलसएहिं.--गाथा षोडशकों दसविहे-दश प्रकार के समण--साधु के
सत्तरसविहे-सत्तरह प्रकार के धम्मे----धर्म में (लगे दोषों से) असजमे-असंयम में एक्कारसहिं-ग्यारह
अट्ठारसविहे-अठारह प्रकार के उवासग--श्रावक की
श्रबंभे- अब्रह्मचर्य में पडिमाहिं--प्रतिमाओं से एगूणवीसाए.-उन्नीस बारसहिं-बारह
नायज्झयणेहिं-ज्ञाता सूत्र के भिक्खु-भिन्तु की
अध्ययनों से पडिमाहिं--प्रतिमाओं से वीसाए = बीस तेरसहि-तेरह
असमाहि =असमाधि के
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