________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
श्रमण-सूत्र
प्रमार्जन के द्वारा किसी भी प्रकार की पीड़ा पहुँचाए विना एकान्त स्थान में धीरे से छोड़ देना चाहिए । प्रथम अहिंसाव्रत की कितनी अधिक सूक्ष्म साधना है ? धर्म के प्रति कितनी अधिक जागरूकता है ? भगवान महावीर, अपने शिष्यों को, कर्तव्य क्षेत्र में, कहीं भी उपेक्षित नहीं होने देते।
वस्त्रपात्र श्रादि को अच्छी तरह खोलकर चारों ओर से देखना, प्रतिलेखना है और रजोहरण तथा पूँ जणी के द्वारा अच्छी तरह साफ करना, प्रमार्जना है । पात्रादि को बिल्कुल ही न देखना, अप्रतिलेखना है। और इसी प्रकार बिल्कुल प्रमार्जन न करना, अपमार्जन है । आलस्यवश शीघ्रता में अविधि से देखना, दुष्प्रतिलेखना है। और इसी प्रकार शीघ्रता में विना विधि से उपयोग-हीन दशा में प्रमार्जन करना, दुष्प्रमार्जन है । प्रतिलेखना के सम्बन्ध में जानकरी की इच्छा रखने वाले सजन उत्तराध्ययन सूत्र का समाचारी अध्ययन अवलोकन करें। चार प्रकार के दोष
प्रत्येक व्रत में लगने वाले जितने भी दोष होते हैं, उनके चार प्रकार हैं-(१) अतिक्रम, (२) व्यतिक्रम, (३) अतिचार (४) अनाचार ।
(१) अतिक्रम-ग्रहण किए हुए व्रत अथवा प्रतिज्ञा को भंग करने का संकल्प करना ।
(२) व्यतिक्रम-व्रत भंग करने के लिए उद्यत होना ।।
(३) अतिचार-व्रत भंग करने के लिए साधन जुटा लेना तथा एक देश से व्रत किंवा प्रतिज्ञा को खण्डित करना ।
(४) अनाचार-व्रत को सर्वथा भंग करना।
उदाहरण के लिए प्राधाकर्मी अाहार का उदाहरण अधिक स्पष्ट है । इस पर से दोषों की कल्पना टीक तरह समझ में आ सकती है।
-कोई अनुरागी भक्त प्राधाकर्मी अाहार तैयार कर साधु को नमन्त्रण दे और माधु जानते हुए भी उस निमन्त्रण को स्वीकार करले,
For Private And Personal