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काल-प्रतिलेखना-सूत्र
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आधाकर्मी अाहार लेने की इच्छा करे और पात्र लेकर उठ खड़ा हो, तो यहाँ तक अतिक्रम दोष होता है। प्राधाकर्मी अाहार लेने के लिए
आश्रय से बाहर पैर रखने से लेकर घर में प्रवेश करने, झोली खोलकर फैलाने तक व्यतिक्रम दोप है । अाधाकर्मी अाहार ग्रहण करने से लेकर उपाश्रय में आकर खाने की तैयारी करने तथा ग्रास हाथ में उठाने तक अतिचार दोष है । और ग्रास मुख में डालने तथा खा लेने पर अनाचार दोष लगता है । इन चारों ही दोषों में उत्तरोत्तर दोष की अधिकता है । ___ अतिक्रमादि के लिए, कार अाधाकम दूषित आहार के ग्रहण का जो उदाहरण दिया है, उसके लिए जिनदास महत्तर-कृत श्रावश्यक चूणि देखनी चाहिये । वहाँ विस्तार से अतिक्रमादि के स्वरूप का निरूपण किया गया है।
आचार्य हरिभद्र ने भी जिनदास महत्तर के उल्लेखानुसार ही अतिक्रमादि का विवेचन किया है। उन्होंने इस सम्बन्ध में एक प्राचीन प्राकृत-गाथा उद्धृत की है, जो सक्षेपरुचि जिज्ञासु के लिए बड़ी महत्त्वपूर्ण है। लेखक भी उसको उद्धृत करने का भाव सवरण नहीं कर सकता। "प्राधाकम्म-निमंतण,
पडिसुणमाणे अइक्कमो होइ । पय-भेयाइ बइक्कम,
गहिए तइर यरो गलिए ॥" [प्राधाकर्म-निमन्त्रणे,
प्रतिशृण्वति अतिक्रमो भवति । पद-भेदादि व्यतिक्रमो,
गृहीते तृतीय इतरो गिलिते ॥]
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