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विराधना-सूत्र
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विवेचन किसी भी प्रकार का दोष न लगाते हुए चारित्र का विशुद्ध रूप से पालन करना अाराधना होती है। और इसके विपरीत ज्ञानादि प्राचार का सम्यक् रूप से अाराधन न करना, उनका खण्डन करना, उनमें दोष लगाना, विराधना है । 'विगता भाराहणा विराहणा। जिनदास महत्तर । 'कस्यचिद् वस्तुनः खण्डनं विराधनं, तदेव विराधना। प्राचार्य हरिभद्र । ज्ञान विराधना ___ ज्ञान की तथा ज्ञानी की निन्दा करना, गुरु श्रादि का अपलाप करना, श्राशातना करना, ज्ञानार्जन में श्रालस्य करना, दूसरे के अध्ययन में अन्तराय डालना, अकाल स्वाध्याय करना, इत्यादि ज्ञान विराधना है ।
दर्शन विराधना
दर्शन से अभिप्राय सम्यग् दर्शन से है । सम्यग्दर्शन का अर्थ--- 'सम्यक्त्व' है । अतः सम्यक्त्व एवं सम्यक्त्व धारी साधक की निन्दा करना, मिथ्यात्व एवं मिथ्यात्वी की प्रशंसा करना, पाखण्ड मत का प्राडंबर देखकर डगमगा जाना, दर्शन विराधना है। चारित्र विराधना ___ चारित्र का अर्थ---'सच्चरण है। अहिंसा, सत्य श्रादि चारित्र का भली भाँति पालन न करना, उसमें दोष लगाना, उसका खण्डन करना, चारित्र विराधना है।
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