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गोचरचर्या सूत्र
__७६ किसी भोजन को डाल कर, दिया जाने वाला अन्य भोजन लेना; अवभाषण भिक्षा=विशिष्ट भोजन का माँगना अवभाषण है, सो अवभाषण के द्वारा भिक्षा लेना; उद्गम-आधा कर्म आदि १६ उद्गम दोषों से सहित भोजन लेना; उत्पादन-धात्री आदि १६ साधु की तर्फ से लगने वाले दोषों से सहित भोजन लेना। एषणा-ग्रहणैषणा के शंका श्रादि १० दोषों से सहित भोजन लेना। ____ उपयुक्र दोषों वाला अशुद्ध-साधुमर्यादा की दृष्टि से अयुक्र श्रोहर पानी ग्रहण किया हों, ग्रहण किया हुआ भोग लिया हो; किन्तु दूषित जानकर भी परठा न हो तो तजन्य समस्त पाप मिथ्या हो।
विवेचन जीवनयात्रा के लिए मनुष्य को भोजन की आवश्यकता है। यदि मनुष्य भोजन न करे, सर्वदा और सर्वथा निराहार ही रहे तो मनुष्य का कोमल जीवन टिक नहीं सकता । और जीवन की अहिंसा, सत्य श्रादि उच्च साधनाओं के लिए, कर्तव्य पूर्ति के लिए मनुष्य को जीवित रहना आवश्यक है । जीवन का महत्त्व संसार में किसी भी प्रकार से कम नहीं आँका जा सकता; परन्तु शर्त है कि वह शुभ उद्देश्य के लिए हो, स्वपर के कल्याण के लिए हो; दुराचार या अत्याचार के लिए न हो। जैन धर्म जैसा कठोर निवृत्तिप्रधान धर्म भी जीवन के प्रति उपेक्षित रहने को नहीं कहता । अात्मघाती के लिए वह महापापी शब्द का प्रयोग करता है।
भोजन श्रावश्यक है, इसके लिए कोई दूसरा विकल्प हो ही नहीं सकता । परन्तु भोजन कैसा श्रोर किसलिए करना चाहिए ? यह एक विचारणीय प्रश्न है । साधारण लोगों का खयाल है कि भोजन स्वादिष्ट होना चाहिए, फिर भले वह कैसा ही हो ? ये लोग जीवन की महत्ता को नहीं जानते। इनका जीवन-क्षेत्र केवल जिला के चार अंगुल के टुकड़े पर ही केन्द्रित है । अच्छे-अच्छे स्वादिष्ट चटनी, आचार, मुरब्बे,
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