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श्रमण-सूत्र
चीज समझे तथाच लक्ष्य न दे, किन्तु जिसको साधना की चिन्ता है, भूलों का पश्चात्ताप है, वह कभी भी इस अोर से उदासीन नहीं रह सकता। ____एक करोड़पति सेठ है । रात के बारह बज गए हैं, तथापि बहीखाते
की जाँच-पड़ताल हो रही है। एक पाई गुम है, उसका मीजान नहीं मिल रहा है । आप कहेंगे-~~-यह भी क्या ? पाई ही तो गुम हुई है, उसके लिए इतनी सिरदर्दी ? परन्तु श्राप अर्थशास्त्र पर ध्यान दीजिए । एक पाई का मूल्य भी कुछ कम नहीं है । 'जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः' की उक्ति के अनुसार बूंद-बूंद से घट भर जाता है और पाईपाई जोड़ते हुए तिजोरी भर जाती है। ___ धर्म साधना के लिए भी ठीक यही बात है । साधारण साधक भी छोटी से छोटी साधनाओं पर लक्ष्य देते हुए एक दिन ऊँचा साधक बन जाता है। इसके विपरीत साधारण सी भूलों की उपेक्षा करते रहने से ऊँचे-से-ऊँचा साधक भी पतन के पथ पर फिसल पड़ता है। यही कारण है --जैनाचारशास्त्र सूक्ष्म-से-सूक्ष्म भूलों पर भी ध्यान रखने का आदेश देता हैं।
प्रस्तुत सूत्र शयन सम्बन्धी अतिचारों का प्रतिक्रमण करने के लिए है । सोते समय जो भी शारीरिक, वाचिक एवं मानसिक भूल हुई हो, संयम की सीमा से बाहर अतिक्रमण हुआ हो, किसी भी तरह का विपर्यास हुआ हो, उन सबके लिए पश्चात्ताप करने का, 'मिच्छा दुक्कडं' देने का विधान प्रस्तुत सूत्र में किया गया है। ..
अाज की जनता, जब कि प्रत्यक्ष जागृत अवस्था में किए गए पापों का भी उत्तरदायित्व लेने के लिए तैयार नहीं है, तब जैनमुनि स्वप्न अवस्था की भूलों का उत्तरदायित्व भी अपने ऊपर लिए हुए है । शयन तो एक प्रकार से क्षणिक मृतदशा मानी जाती है । वहाँ का मन मनुष्य के अपने वश में नहीं होता । अतः साधारण मनुष्य कह सकता है कि सोते समय मैं क्या कर सकता था ? मैं तो लाचार था। मन ही भ्रान्त रहा,
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