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श्रमण-सूत्र
निगामसिजाए - बार-बार चिर- स सरक्खामोसे-सचित्त रज से युक्र काल तक सोने से
वस्तु को छूते हुए उव्वट्टणाए = करवट बदलने से पाउलमाउलाए, आकुल व्यापरिवट्टणाए = बार-बार करवट
कुलता से बदलने से सोश्रणवत्तियाए = स्वप्न के निमित्त श्राउटणाए - हाथ पैर श्रादि को
संकुचित करने से इत्थी विप्परियासियाए-स्त्री संबंधी पसारणाए - हाथ पैर आदि को
___विपर्यास से फैलाने से दिदि विप्परियासियाए = दृष्टि के छप्पइय = षटपदी यूका आदि
विपर्यास से
मणविप्परियासियाए = मन के सघट्टणाए = स्पर्श करने से
विपास से कूइए - खांसते हुए
पाणभोयण - पानी और भोजन के कक्कराइए = शय्या के दोष कहते विप्परियासियाए = विपर्यास से
जो यदि कोई छीए - छींकते हुए
मे मैंने जंभाइए = उबासी लेते हुए देवसिश्रो = दिवस सम्बन्धी अामोसे विना पूँजे स्पर्श करते अइयारो : अतिचार
कत्रो = किया हो तो
व विपर्यास का अर्थ विपर्यय है। स्वप्न में स्त्री के द्वारा ब्रह्मचर्य की भावना में विपर्यय हो जाना, स्त्री विपर्यास है। जिनदास महत्तर कहते हैं-'विपर्यासो अबभचेरं । परन्तु केवल अब्रह्मचर्य ही नहीं, किसी भी प्रकार की सयमविरुद्ध वृत्ति या प्रवृत्ति विपर्यास है। आगे मनोविपर्यास और पानभोजनविपर्यास आदि में यही अर्थ ठीक बैठता है ।
स्त्री साधक 'इत्थी विप्परियासियाए' के स्थान में 'पुरिसवियरियासियाए,' पढ़े। उनके लिए, पुरुष ही विपर्यास का निमित्त है।
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