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* नीतिवाक्यामृत
(A) का पात्र':-- स्वामी के अनुकूल चलनेवाले, प्रतिभाशाली, चतुर और कर्त्तव्यमें निपुण सेवकोंको हा गया है ॥२॥
कामपात्र :- इन्द्रियजन्य सुखका अनुभव करनेवाले मनुष्यों का मन जिसके शरीरके स्पर्शसे सुख ता है ऐसी उपभोग योग्य कमनीय कामिनीको विद्वानोंने कामपात्र कहा है || ३ ||
के मुय कार्यपात्र लौकिक प्रयोजनोंकी सिद्धि और
४) बशिष्ट कहा है कि हाताको धर्म (अपनी स्त्री) दोनों लोकोंके सुख देता है ||४||
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विशद विषेचन :- इन्हीं आचार्यश्रीने यशस्तिलक में पात्रोंके पांच भेद बताये है जो विशेषहै!.
समग्र जैन सिद्धान्तका विद्वान् चाहे वह गृहस्थ हो या सुनि ), श्रावक ( प्रतिमारूप चरित्रधमंको माता व श्रावक ), साधु (मुनिराज ), आचार्य और जैनशासन की प्रभावना करनेवाला विद्वान इस प्रकारके पात्र विद्वानों ने माने हैं ||१||
पाँचों पात्रोंको दान देनेका विधान किया गया है, परन्तु विस्तार के भय से हम लिखना
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विषयमें दूसरोंका मत संग्रह करते हैं :
"एवं कीर्तिपात्रमपीति केचित् ||१३||
:- कुछ नीतिकारोंने उक्त पात्रोंके सिवाय कीतिपात्र ( जिसको दान देनेपर दाताको संसार में को भी दान देने योग्य पात्र बताया है ||१३||
[ नोट:
:- यह सूत्र नीति की संस्कृत टीका पुस्तक में नहीं है किन्तु मु० मूत्र पुस्तकसे संग्रह
है ]
भय जिन कारणों मे मनुष्यकी कीति दूषित होती है उसे बताकर कीर्तिके कारणका निर्देश करते हैं :किं तया की या वितान विभर्ति प्रतिरुद्धि वा धर्मं भागीरथी - श्री पर्वतवद्भावा. जामन्यदेव प्रसिद्ध : कारणं न पुनस्त्यागः यतो न खलु गृहीतारो व्यापिनः सनातनाश्च ॥१४॥
अर्थ :- मनुष्यकी उस कीतिसे क्या लाभ है ? अर्थात् कोई लाभ नहीं है - वह निन्ध है, जो पते अभि- अधीनमें रहनेवाले कुटुम्बियों तथा सेवकजनका पालन नहीं करती और धर्मको रोकती है- नष्ट करती है। आशय यह है कि जो मनुष्य अपने अधीन रहने वालोंका पालन पोषण
१, २ देखो नोतिवाक्यामृत संस्कृत टीका पृष्ठ ११, १२ ।
३ तथा च व शेष्ठ :
कार्यपात्रमि स्मृतं । कामाचं निजा कान्ता लोकद्वयप्रदायके ||२॥ ४ देखो पनि श्र० ८ पृ० ४०३ ।