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* नीतियाक्याभूत १
अब दुष्ट राजाका लक्षणनिर्देश करते हैं:
यो युक्तायुक्तयोरविवेकी विपर्यस्तमतिर्वा स दुविनीतः' ॥४१॥ अर्थ:-जो योग्य और अयोग्य पदार्थों के विषय में ज्ञानशून्य है अर्थात् योग्य को योग्य और अयोग्य को अयोग्य न समझकर अयोग्य पुरुषों को दान और सन्मानादि से प्रसन्न करता है और योग्य व्यक्तियों का अपमान करता है तथा विपरीतबुद्धि से युक्त है अर्थात् शिष्ट पुरुषों के सदाचार की अवहेलना करके पार कर्मों में प्रवृत्ति करता है उसे दुष्ट कहते हैं ।।शा
नारद' विद्वान् ने भी कहा है कि 'जो राजा योग्य और अयोग्य के भेद को नहीं जानता और विपरीत बुद्धिसे युक्त है-शिष्टाचारसे विरुद्ध मद्यपान आदि में प्रवृत्ति करता है उसे दुत्त-दुष्ट-कहते
अब राज्यपदके योग्य वषयका सवश माते हैं: ...
यत्र सद्भिराधीयमाना गुणा संक्रामन्ति तद्रव्यं ॥४२॥ अर्थः-जिस पुरुषद्रव्यमें राजनीतिज्ञ विद्वान् शिष्टपुरुषों के द्वारा नीति, आचारसम्पत्ति और शूरता आदि प्रजापालन में उपयोगी सद्गुण सिखाये जाकर स्थिर होगये हों----जो इन सदगुणों से भलंकृत होगया हो-वह पुरुष राजा होनेके योग्य है ॥४॥
____ भागुरि विद्वान्ने भी लिखा है कि 'वही पुरुषद्रव्य राजा होने के योग्य है जिसमें राजनीतिज्ञ विद्वानों के द्वारा सद्गुण-नीति, सदाचार और शूरता आदि-स्थिर होगये हो । ॥१॥
अब द्रव्यप्रकृतियुक्त--राज्यपदके योग्य राजनैतिक ज्ञान, आचारसम्पत्ति और शूरवीरता आदि सद्गुणोंसे युक्त-पुरुष जब अद्रध्य प्रकृति युक्त अर्थात् उक्तगुणोंसे शून्य और मूर्खता, विषयलम्पटता और कायरता श्रादि दोषोंसे युक्त होजाता है उससे होनेवाली हानि बताते हैं:
___ यतो द्रव्याद्रव्यप्रकृतिरपि कश्चित् पुरुषः सङ्कीर्ण गजवत् ॥४३॥ अर्य:--अब मनुष्य द्रव्यप्रकृति-राज्यपदके योग्य राजनैतिफहान और आधारसम्पधि भाषि सद्गुणों से अद्रव्यप्रकृति-उक्त सद्गुणोंको त्याग कर मूर्खता, अनाचार और कायरता
१ 'युक्तायुक्तयोगवियोगयोरविवेकतिर्वा स दुविनीतः' इसप्रकार मु. मू और • निम्। प्रतियोंमें पाठ है परन्तु अर्थभेद कुछ नहीं है।
२ तथा च नारदःयुनायुक्तविषेक यो न जानाति महीपतिः। दुनः स परिशेयो यो वा वामभतिभवेत् ॥१॥ । तथा च भागुरि:योज्यमाना उपाध्याययंत्र सि स्थिराश्च ते ।
भवन्ति नरि द्रव्यं तत् प्रोच्यते पार्थिवोचितम् ॥१॥ ४ उक्त सूत्र मु० और हस्त लि. मूलप्रतियोंसे संकलन किया गया है क्योंकि स टी. सक* 'स्तो ब्रम्मातिर स्ति पुरुषः संकीर्णगजवत्' ऐसा अपूर्ण सूत्र होने से उसका अर्थमी क्या मही होता था। समार: