________________
नीतिवाक्यामृत
अजीण भयात् कि भोजनं परित्यज्यते A ॥ १२४ ।। अर्थ-हिरणोंके डरसे क्या खेती नहीं कीजाती ? अवश्य कीजाती है। अओर्ण के इरसे क्या भोजन करना छोड़ दिया जाता है: नहीं छोड़ा जाता । सारांश यह है कि जिसप्रकार हिरणोंके हरसे खेती करना नहीं छोड़ा जाता और अजीर्ण के भयसे भोजन करना नहीं छोड़ा जाता, उसीप्रकार विघ्नोंके बरसे सजन लोग कतैय-पथको नहीं छोड़ते ॥ १२३-५२४ ॥
कार्यारम्भमें विन्नोंको विद्यमानतास खलु कोऽयीहाभूदस्ति भविष्यति वा यस्य कार्यारम्भेषु प्रत्यवाया न भवन्ति । || १२५ ॥
अर्ध–जिसको कार्यारम्भमें विघ्न नहीं होते, या लोकमें ऐसा कोई पुरुष हुपा है ? होगा ? या है ? न हुआ, न होगा, न है ।। १२शा
भागरि' विद्वानने कहा है कि 'उद्योगीको लछमी मिलता है। कुत्सित पुरुष-आलसी लोग-भाग्यभरोसे रहते हैं, इसलिये भाग्य को छोड़कर आत्म-शक्ति से उद्योग करा, तथापि यदि काय-सिद्धि नहीं होती, इसमें कत्र्तव्यशील पुरुषका कोई दोष नही किन्तु भाग्यका ही दाप है ।।१।। दुष्ट अभिप्राय-युक्त पुरुषोंके कार्य
आत्मसंशयेन कार्यारम्भा व्यालहृदयानाम् * || १२६ ।। अर्थ-सांप व श्वापद (हिंसक जन्तओं) के समान दुष्ट हुनय-युक्त पुरुष ऐसे निन्ध कार्य (चोरीवगैरह) प्रारम्भ करते हैं, जिनसे उन्हें अपने नाशकी संभावना रहती है ॥१९॥
शुक्र विद्वान्ने भी कहा है कि 'सर्प या श्वापद तुल्य दुष्ट हृदय-युक्त राजानोंके सभी कायें उनके घातक होत हैं ॥शा महापुरुषोंके गुण घ मृदुना लाभका क्रमशः विवेचनदुर्भारुत्वमासमरत्वं रिपो प्रति महापुरुषाणां ॥१२७॥
-.-- .. -.A 'मजीर्णभयाम्म खलु भोजनं परित्यज्यते' ऐसा मु... जि० म०प्रतियों में पाठ है, परन्तु अर्थ मेद पुष नहीं। B 'स स्खलु कि कोऽपोहामवस्ति भविष्यति वा यस्याप्रत्यवायः कार्यारम्भः' इसप्रकार
भु मिप्रतियों में पाठान्तर धर्तमान है, परन्तु पर्य-भेद कुछ नहीं । । तथा च भागु-यस्मोद्यमो भवति त सम्पति लमी, देवेन देवमिति कापुलला पन्त । देवं निहत्व र
पौरुषमारमात्या, पत्ले से पदि म सिनयति कोऽत्र वोकः ॥१॥ 'भामसंशयेन कार्यारम्भो वानरयानाम्। ऐसा मु०प०सि० म० प्रतियों में पाटावर है, जिसका अर्थ यह है कि जो मनुष्य परिपक्वबुद्धि-विचारसीस नहीं है बहें कार्य-भारम्भमें अपनी गा [यह कार्य मुझसे होगा।
नहीं ! इस प्रकारको पाशा हुआ करता है। २ तथा शुक्र:-ये प्यालहृदया भूपास्तेषां कर्माणि यानि च । प्रारमसन्देहकारीथि बारि म्युनिखिमानि ।
-
-..-
-..-...
--