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जनपद समुश गुरु' विद्वान्ने भी मर्यादा उल्लंघन न करनेवाले राजाके विषमें इसाप्रकार कहा है ॥१॥
मजाकी रक्षा करने के निम्न प्रकार हैं। (१) धन नष्ट हो जानेसे विपत्सिमें फंसे हुये (रिख) कुटुम्बी. जनोंकी द्रव्यसे सहायता करना । (२) प्रजासे अन्याय पर्वक्र तृणमात्रमी अधिक टेक्स वसूल न करनान्यायपूर्वक उचित टेक्स लेना अथवा दरिद्रतावश-आपत्तिमें फसो हुई प्रजासे तृणमात्रभी टेक्स न ना । (३) किसी समय (अपराध करने पर)-अपराधानुकूल दंड-विधान करना ।।२०।
नारद विद्वान ने भी लोकरक्षाके विषयमें इसी प्रकार कहा है ||१||
राष्ट्रक शुल्क-स्थान (प्रधान शहर और बड़े २ कृषिप्रधान प्राम), जो कि पायसे सुरक्षित होते हैं (महापर अधिक टेक्स न लेकर न्यायोचित टेक्स लिया जाता दो तथा चोरों-श्रादि द्वारा चुगई हुई प्रजाकी धनादि वस्तु वापिस दे दी जाती हा) और जहां पर व्यापारियोंको खरीदने और बेचने योग्य वस्तुओं (केसर, हींग वस्त्रादि) की अधिक संख्यामें दुकानें हों, वे राजाको कामधेनु समान अमिलपित वस्तु देने वाले होते हैं। क्योंकि शुरुषस्थानोंसे राजा टेक्सके जरिये प्रचुरसम्पत्ति नय कर शिष्टपालन व दुनिग्रहमें उपयोगी सैनिक विभाग, शिक्षा वि..ाग व स्वास्थ्य विभाग आदिको उमति करने में समर्थ होता है, एवं राष्ट्रको शत्र-कृत उपद्रवोंसे सुरक्षित हुआ स्वजानेको वृद्धि करता है । परन्तु शुल्कस्थान न्यायसे सुरक्षत होने चाहिये, अन्यथा प्रजा असंतुष्ट और सुब्ध हो जाती है, जिसका परिणाम भयकर होता है-मायके द्वार रुक जानेसे कोष-क्षति व शक्त उपद्रवों द्वारा राम्प नष्ट होता है |शा
शुक्र : विद्वान्ने भी शुज्कस्थानोंको न्यायसे सुरक्षित रखनेके विषयमें इसी प्रकार कहा है ॥१॥
सेना व राजकोषको द्धिके कारण, विद्वान् व प्रामणों को देने योग्य भूमि, भूमि-धान सालाप दान आदिमें विशेषता अथवा पादविधायके उपरान्त न्यायोचित निणय
राशा चतुरंगबलामिवृद्धये भूयांसो भक्तानामा: ॥२२॥ सुमहच्च गोमण्डल हिरएपाय युक्त शुल्क कोशवृद्धिहेतुः ॥२३॥ देवद्विजप्रदेया गोरुतप्रमाणा भूमितरादातर लनिर्वाहा ॥२४॥ क्षेत्रवप्रखण्डधृमायतनानामुत्तरः पूर्व वाधते न पुनहसर पूर्वः ॥२५॥
१ तथा च गुरुः- मर्यादातिकमो यस्मा भूमौ राशः प्रजापते । समृदापि साइजायतेऽरयवसतिभा ॥२॥ २ व्याप मारवः-[चिम्मन क्षीण वित्तानो] स्वप्राइस्य विपर्जम् । युकदरच लोकानां परमं परिकार
शो० परि०। ३ तथा च :-मा नैवाधिक शुरुकं चौराहत मवेत । पिण्ठा भूभुजा वेगं बायो तत् सोश Im * इसके पश्चात् मू० प्रतियों में मामबहस्तो भूयते हि किलावटकसाल इन तीनों सूत्रोंग सम्बची कि० टी० पुस्तकके जुर्म-समुद्रदेशमें वर्तमान है, उनका अनुवाद वहां किया जायेगा। इसके सिपाचन प्रतियोंमें 'न हि ममियोगात परः प्रपंजनविविवरस्ति इस प्रकारका अधिक पाठ बर्षमाग; मिला अर्थ यह है कि राजा द्वारा दिये जाने वाले अपराधानुकक्ष वंध-विधान रूप न्यायसे राष्ट्रको समस्त प्रा मित्र रहती है-नीति मार्ग पर मारूक रहती है, इसके सिवाय प्रजाकी विशुद्धिका दूसरा कोई उपाय नहीं।