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कोश समुरेश व्यास' विद्वानने लिम्बा है कि संसारमें मनुष्य धन का नौकर है, धन किसीका नहीं क्योंकि धनार्थ कुलीन व्यक्तिमी धनाड्यकी सेवा करते हैं ।।१।।
जिसके पास प्रचुर धन विद्यमान है, वही महान् और कुज्ञीन कहलाता है ॥११॥
जैमिनि विद्वानने लिखा है कि संसारमें जुपच होनेपर भी धनहीन नीचकुलमें, और धनवान् नीचकुलका होने परभी उच्चकुलमें गिना जाता है ।।
____ जो आश्रितोंको सन्तुष्ट नहीं करपासा, उसकी निरर्थक फुलीनता और बड़प्पनसे कोई लाभ नहीं है। निष्कर्ष यह है कि पुरुष लोकमें अपनी कुलीनता व बड़प्पन धन द्वारा भाभितों को रक्षा करने के उपरान्नही कायम रख सकता है, अतएव धन-संग्रह अनिवार्य है। धनाड्य पर कंजस मनुष्यका बड़प्पन स्पर्ष है क्योंकि उसके आश्रित उससे मंतुष्ट नहीं रह पाते ॥१२॥
गर्ग' विद्वानने भी ऊपण के विषय पी कर कहा है । उक्त बातका दृष्टान्त द्वारा समर्थन, व खाली खजाने की वृद्धिका उपाय
सस्य किं सरसो महस्वेन यत्र न जलानि ॥ १३ ॥ देवद्विजवाणा धर्माधरपरिजनानुपयोगिद्रव्यमागैरास्यविधवानियोगिग्रामकटगणिकासंघपाखशिखविभवप्रत्यादानः समापौरजानपदद्रविण संविभागप्रार्थनैरनुपक्षयश्रीकामंत्रिपुरोहितसामन्तभूपालानुनयग्रहागमनाम्यां वीवकोशः कोश यदि ॥१४॥
भई-स वालाब के विस्तीर्ण होनेसे क्या लाभ है? जिसमें पर्याप्त उल नहीं परन्तु जबसे परिपूर्ण छोटा तालाव भी इससे कहीं अधिक प्रशंसनीय है । उसो प्रकार मनुष्य अनीनवा भाषि से बना होने पर भी यदि परिद्र है तो उसका बड़प्पन व्यर्थ है। अतः न्यायोचित साधनों हारा धन-संचय महत्वपूर्ण होता है ॥१५॥
खासी खजानेको भरने के लिये राजा निम्नलिसिव पार उपाय उपयोगमें सावे
(१) विद्वान् प्रामण और व्यापारियोंसे इनके द्वारा संचित किये हुए धनमें से क्रमशः धर्मानुशाम . यशानुटान और कौटुम्बिक पालनके अतिरिक्त जो धनराशि शेष बचे, उसे लेकर अपनी कोपपति करे।
(२) धनान्यपुरुष, सन्तान-हीन पनाव्य, विधषा, धर्माप्पा मादि प्रामाण्ठ अधिकारीवर्ग, बेरमा भौका समूह मौर कापालिक भावि पानी लोगोंके धनपर टेक्स लगाकर पनी सम्पत्तिका का अंश कर अपने कोशको पुति करे।
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बारपास:-प्रबंस पुरुषो दासो माझे पासोऽत्र कस्यचित् । पर्याय येन सेम्पन्न मोचा पिसोजः | १व्या मिनि:ोषोऽपि सुपीचोऽत्र पस्व मो विधते धनम् । ममीकोऽपि पारयो पल सन्धि पार्दिकाः ।।
यार गग':-गानिमा वित्त वा पुस्मिसरा । तीमोन असा लावा .