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नीतिवाक्यामृत
गढ़ोत्पन्नोऽपविद्ध एते पद पुत्रा दायादाः पिण्डदाश्च A ॥४१॥
पर्व-जो साधारमा धनवाला होकरके भी अपनी उदारता के कारण बहुत से मनष्यों का पालन-पोषण करता है. वही स्वामी है और जो स्वामी धनाय होकर कृपणता-वश ऐसा नहीं करसा वह दूसरोंके द्वारा सपमोगन पाने वाली बर्जुन वृक्षको फलम यत्तिके समान निरर्थक व निन्ध गिना जाता है।३१।। जो रास्ते में रहने वाले वृक्ष के समान समस्त अभ्यागत या याचकों के उपद्रव सहन करता हुमा समेशिव नहीं होता, बद्दी दाता है। अर्थात्- जिस प्रकार रास्ते में वर्तमान वृक्ष पान्धों द्वारा किए जाने वाजे सपद्रव (पुष्प व फल तोड़ना ) सहन करता है, उसी प्रकार भोजन व शयनादि के दान द्वारा मभ्यागतों को सम्मानित करने वाला दाता भी उनकं द्वारा दिय जान बाल कट सहन करता ह ।। २ ।।
ज्यास' और गुरु ने भी स्वामी और दाताके विषय में इसी प्रकारका मल्लेख किया है ॥१-२॥
राबा लोग पर्वतोंके समान दूर से हो सुन्दर दिखाई वत है, समीप में जाने से नहीं । अर्थात्जिस प्रकार पर्वच पाश्व भाग-आदि के कारण दूर से मनाहर और समाप में जाने पर भनेक थूहरमादि कटोने वृक्षों व बड़ो २ विशाल चट्टानों के कारण पढ़ने में कष्टदायक होते हैं, उसी प्रकार राजा लोग भी पत्र-पामरादि विभूषि-युक्त होने से दूर से रमणोक दृष्टिगोचर होते हैं, परन्तु पास जाने से कष्टदायकभार्थिदण्ड भावि द्वारा पीड़ित करने वाले होते हैं, अत: उनसे दूर रहना ही श्रेष्ठ है ।।३३।। सभी देश उनके पारमें कही जाने वाली लोगों की सुन्दर बातें सुननेसे रमणीक मालम पड़त है, अतः बिना परीचा किए ही किसी के कहने मात्र से परदेश को गुण युक्त जानकर स्वदेश का त्याग करना उचित नहीं ॥३४ ।।
गौतम' और रेभ्यने भी राजाओं व परदेशके विषय में इसी प्रकारका उल्लेख किया है ।।१-२॥
निधन (हरि) और बन्धुहीन पुरुष को भनेक मनुष्यों से व्याप्त पूधियो भी महान् अटवीक समान दासदायक है, क्योंकि पसे दारिद्रय व कुटुम्बहीनता के कारण वहां सांसारिक सुख नहीं मिल सकता। धनाक्ष्य पुरुष को वनस्थली भी गजधानी समान रुख देने वाली हो जातो है ॥ ३५-३६ ।।
रेभ्य ने भी दरिद्रय पाहोन व्यक्ति के बारे में इसी प्रकार का कथन किया है ।। १ ।
___A बलके पश्चात् मुम्मन्प्रति 'कानीनः सहोदः नीतः पौनकः स्वयंसः शोश्चेति षट्पना न दापादा नापि पिया.
दारवर हसना विशेष पाठ है, जिसका अर्थ यह है कि कानोन (म्यासे उत्पन्न हुमा) सहोद, (दामाद) कोत. (पैसे से बिपा हुमा) पोनर्भर (विधवासे सपना हुआ) स्वयंदा और गृह स्त्री से उत्पन्न हुमा के पुत्र अधम होने
सेन पत्रिक सम्पति के अधिकारी होते हैं और न पिताजे स्मृत्यर्ष माहारादि दान ईनेवाखे । - संपादक १ तथा च प्यासः- स्वरूपवितोऽपि षस्वामो यो विभर्ति बहा सदा । प्रभूतकमायुक्तोऽपि सम्पदाप्यनस्म ॥ २ तथा गुरु:-या मागंवाइमाइते य उपद्यं । प्रन्यागतस्य खोकस्य स त्यागी नेताः स्मनः॥1॥ ३ वथा गौतमः-दुरारोहा हि राजानः पर्वता सोडताः । वन्ते पुरतो रम्पा: समीपस्पारच कदाः ॥
या भ्वः दुर्भिसाब पोऽपि दु:स्थापि रामसदितोऽपि च । स्वदेश र परिस्थम्य नावस्मिरिसकामे बजेट । सपा-रेभ्यः-मनस्य मनुष्यस्य वाम्भः रहितस्य च । प्रभूतैरपि संकीर्ण अभूमिमहावी.