Book Title: Nitivakyamrut
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 446
________________ ४२२ नौविधाक्यामृत किया जाता, उसी प्रकार शरीर के व्याधि-पीड़ित रहने से भी यथेष्ट भोजन ब रायन नहीं किया जा सकता ॥५२॥ जो महापुरुष महामुनि समान उत्तम-मध्यम-आदि सभी जाति के अन्न भक्षण करने की कचि रखने वाला तथा समस्त प्रकार के शीत उष्ण आदि के कष्ट सहन करने में समर्थ एवं सभी जगह (पाषाणादि) पर सुख पूर्वक निद्रा लेने की प्रकृति-युक्त है, उसे संसार में कोई काय मसाध्य (न करने योग्य नहीं ॥३॥ यह लएमा स्त्रीको प्रोति-समान अस्थिर-नाश होनेवाली है ५४ । जैमिनि 'बगुरु ने भी रुग्ण शरीर व माधु जीवन के विषय में इसी प्रकार कहा है ॥ १-२॥ वही लोग राजामों के प्रेमपात्र होते हैं, जो कि उनके समक्ष दूसरों की चुगली किया करते हैं ॥ ५५ ॥ नोच पुरुए दूसरों की निन्दा करके अपने को पड़ा मानता है ॥ ५६ ॥ हारीत व जैमिनो ने भीराजामों के प्रेमपात्र और नोलपुरुष केवारेमें इसी प्रकारकहा ॥१-३॥ गुण-फत महत्व, महापुरुष, सत्-असत्संगका पसर, प्रयोजनार्थी व निर्धनका धनाव्य के प्रति कसंध्य, सत्धुनष-सेवा का परिणाम, प्रयोजनार्थी द्वारा पोष-दृष्टि का अभाव, चित्त प्रसन्न करनेवाली वस्तुप व राजा के प्रति पुरुष का कत्तव्य न खलु परमाणोरन्पत्वेन महान् मेरुः किन्तु स्वगुणेन ॥ ५७॥ न खल निनिमित्तं महान्ता भवन्ति कलुषितमनीषाः ।। ५८ ॥ स वन्हेः प्रभावो यत्प्रकृत्या शीतलमपि जलं भवत्युष्य ।।५६|| सुचिरस्थापिने कार्यार्थी वा साधुपपरेत् ॥ ६० ॥ स्थितैः सहार्योपचारेण व्यवहार न कुर्यात् ॥६१॥ सत्पुरुषपुरश्चारितया शुभमशुभं वा कुर्चतो नास्त्यपवादः प्राणव्यापादोबा६२। सपदि सम्पदमनुबध्नाति विपञ्च विपदं ॥ ६३ ॥ गोरिव दुग्धार्थी को नाम कार्याथी परस्पर विचारयति ॥६॥ शास्त्रविदः स्त्रियश्चानुभूतगुणाः परमात्मानं रजयन्ति ॥शा चित्रगतमपि राजानं नावमन्येत पात्र हि तेजो महतीसत्पुरुषदेवतास्वरूपेण निष्ठति ॥ १६ ॥ अर्थ-जिस प्रकार सुमेरुपर्वत अपने गुण-पता आदि के कारण महाम् है न कि परमाणु की लघुता से. उसी प्रकार मनुश्य भी विद्वत्ता व सदाचार-मादि सद्गुणों के कारण महान होता है. न कि किसी के दुध होने से ।। ५७ ।। महा पुरुष बिना निमित्त के मलिन बुद्धि-युक्त नहीं होते । अर्थात-जिस प्रकार हुष्ट लोग बिना प्रयोजन पचानक कुपित हो जाते है, वैसे महापुरुष नहीं होते, वे किसी कारणवश कुषित पाते हैं ।। ५८ || प्पा, जैमिनिः-भोजन या नो पाति परिणाम न भवित । निदा सुनयने नैति भयो निमो रिपः ॥ सबा गुहः-मानिकपनिराम्ये सरन्तेऽपि कार्यक्षम । निद्रा पुरोहितस्पापि स समर्थः सदा भर सारीत:-क्षम्ये निरतोसोको राज्ञा भवति सभः | रोऽप्यसीमोऽपि बहुदोचारियोshan तथा जैमिनि:-प्रमान मन्यो भने परापमानतः 11 सानाति परे लोक पाने नरकसम्मवम् ॥

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