________________
( ४२७ ) निग्रह करने के लिये तीषण कुठार (कुल्हाड़ी), तर्कशास्त्र (सोमदेव मूरिके पत्नमें म्यायशास्त्र और राज. पामें मुई-मुहायलोंके मुकदमेंका न्यायोचित निर्णय) के सीरण (गम्भीर) विचार करने में बलिष्ठरें तथा अपनी ललित (दारोनिक) मनोऽनुकूल प्रवृत्ति द्वारा वादियों को परास्त करने वाले (गजकीय पसमें मुद्दईके मनोरथों को पूर्ण करनेवाला-तराजू की तरह परीक्षा द्वारा मुकदमे की सस्यताका नियोयक) है॥३॥ अत्यधिक अभिमान रूप निलो गित मा लामाले लाले, वादी रूप गोंको दलित करने बाला दुधेर विवाद करनेवाले और तार्किकचूडामणि सोमदेवसूरिके सामने वादके समय वृहस्पति भी नहीं ठहा सका, शिर अन्य साधारण पंडित किस प्रकार ठहर सकते हैं ॥४॥
___ इति प्रन्थकारको प्रशस्ति समात
- -
अन्य माल तथा आत्म-परिचय जो है सत्यमार्गका नेता, अझ रागादि-विजेता है । जिसकी पूर्ण ज्ञान-रश्मि से, जग प्रतिभासित होता है ।। जिसकी चरणकमल-सेवा से, यह अनुवाद रचाया है।
ऐसे ऋषभदेवको हमने, शत-शत शीश नवाया है ।।१।। कोदा--सागर नगर मनोझतम, धर्म-धान्य भागार । वर्णाश्रम भाचारका, शभ्र रूप साकार ॥२॥
जेनी जन तहूँ बहु बसें, क्या धर्म निज धार । पूज्य चरण व लसें, जिनसे हों भव-पार ॥३॥ जैन आति परवारमें, जनक कनैयालाल । जननी होगवेवियों, कान्त रूप गुणमान ॥४॥ पुत्र पाँच अनसे भये, पहले पन्नालाल । दूजे कुजीलाल अरू, वीजे बोटेलाल ॥४॥ चौथे सुन्दरलाल बा, पंचम भगवतलाल | प्रायः सबही बन्धुजन, रहें मुदित खुशहाल ।।६।। पतमान में बन्धु दो, विलसत हैं अमलान । बड़े छोटेलाल का, सुन्धरसात सुजान ॥७॥ भाई छोदेलाज तो करें बणिज व्यापार। जिनसे रहती है सवा कमज्ञा मुदित अपार ॥८॥ बाल्यकाकतें मम रुचि, प्रकटी विद्या हेत । तातें हम काशी गये, ललितकला-संस।॥ चौपाई-द्वादश वर्ष साधना करी । गुरु पद-पज में चित दी।
मातृसंस्था में शिक्षा लहो । गैल सदा सम्मति की गही।।१०।। व्याकरण, काव्य, कोष, मति माना। वर्क, धर्म अक नीति वखाना ।।
वाग्मित्व आदि कला परवाना । नानाविध सिख भयो सुजाना ॥ १६ ॥ दोहा-कलकत्ता कालेज की, वीर्य उपाधि महान । जो हमने उत्तीर्ण की, मिनका कहँ बखान ॥ १२ ॥
चौपाई-पानी न्यायतीर्थ' . जानों । दूजी 'प्राचीनन्याय' प्रमानों॥
वीजी कान्यतीर्थ' को मानों। जिसमें साहित्य सकल समानों. १३ ॥ गुरुजन मेरे विद्यासागर । ललित कला के सरस सुधाकर ।। पहले शास्त्री अम्बादत्त । जो थे दर्शनशास्त्र महत ॥ १४ ॥