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प्रकोणक-समुदेश
४२५ . - विका-कार्य में असावधानी करने वाला (बालसी) हो जाता है, पवः नये सेवक पर विश्वास नहीं करना चाहियं ।। ६६ ॥
यल्लभदेव ने भी लोक में प्रायः सभी मनुष्यों को नये सेवकों की बिनय द्वारा एवं प्रतिषि श्यामों व धूर्त लोगो के मिष्ट वचनों द्वारा ठगे जाने का उल्लेख किया है॥१॥
कौन पुरुष इस कलिकाल में की हुई प्रतिज्ञा का निर्वाह (पूर्ण रूपसे पालन) करता है कोई नहीं करता, अतः खूप सोच समझ कर प्रतिज्ञा लेकर उसका पालन करना चाहिये, अन्यथा प्रतिज्ञा भङ्ग होने से पुण्य क्षीण हो जाता है ।। ७० ।। जब तक धन नहीं मिलसा-निर्धन अवस्था में सभी लोग उदार होते हैं । सारांश यह है कि दरिद्रावस्था में प्रायः सभी लोग प्रचुर दान करने के मनोरथ किया करते हैं कि यदि मैं धनान्य होता तो प्रचुर दान करता ॥ ७१ ॥
नारद 'वरेभ्य ने भी प्रतिज्ञा भङ्ग से पुण्यक्षीण होनेका एवं दरिद्र के त्यागी होने का उल्लेख किया है ॥१२॥
स्वार्थी अघन्य पुरुष अपनी प्रयोजन-सिद्धि के लिये नीच श्राचरण से भयभीत नही होते, या खलाभिलाषी मनुष्य कुमा खोदने के लिये नोचे नहीं जाता ? अवश्य जाता है। मभित्राय यह है कि ष्ट प्रयोजन सिद्ध के लिये उत्तम आचरण ही श्रेयस्कर है ।। ७२ ॥
शुक्र " ने भो स्वार्थी पुरुष के विषय में उक्त बात का समर्थन किया है। १॥
जिस प्रकार अपराध के कारण माता द्वारा विरस्कृत किये हुये पये की माता ही जीवन का करती है, उसी प्रकार अपराध-वश पृथक किये हुये सेवक को जीवन रक्षा सपके द्वारा को जाने वाली स्वामी की सेवा शुश्रूषा द्वारा ही होती है। शुक - ने भी सेवक के कर्तव्य के विषय में उक बात की पुष्टि की है ॥१॥
इति प्रकीर्णक-समुद्देश । इति सोमदेवसूरि-विरचित नीतिवाक्यामृत संस्कव अन्य की सागर(सी.पी.)निषातो परवार जैनजातीय पं. सुन्दरकाज शास्त्री जैनन्यायतीर्थ, प्राचीनन्यायतीर्थ ष काध्यतीर्थ-कृत भाषा टीका
समाप्त हुई।
। व्या च पस्समदेवः-अभिनवसेव सावनयः [णि कोक्त विवाप्तिमोहवितः] । भूशनाचनान करैरिह परंपरा
चिसो नास्ति । सं. क्या च मारवः-प्रतिक्षा यः पुरा कृत्या पश्चादूर्भर करोति च। ततः स्याद्गमनिरन हसस्येव जानन्ति के ? " १ तथा च रेभ्यः-दरिद्रः कुरुते पान्छो सर्वदानसमुभवा । पावन्नाप्नोति वित्तं स विकारया मिपुशो भवे ॥१॥
क्या च गुरुः-स्वकार्यसिदये पुभिनीचमार्गोऽपि सेभ्यते । कूपस्य समने थदर पुरुपेण जलाधिना ।। ।। तथा न शुक्रा--निःसारितस्य भृत्यस्य स्वामिनितिकारणं । यथा कुपित या मात्रा बादस्थापि ध सा मतिः ।।