Book Title: Nitivakyamrut
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 452
________________ दूजे श्रीमद्गुरुगणेश हैं, न्यायापार्थ मह तीर्थ समान । पर्णी 'बापू' हैं अति दार्शनिक सौम्य प्रकृति षा सम्त महान || १५॥ दोहा-'सरस्वती' मेरी प्रिया, मनसे हुई सन्तान । एक पुत्र पुत्री-उभय जो हैं पहुगुण खान ॥ १६ ॥ पत्नी मम दुदै वने, सचः नीनी छीन । वंश बढ़ायन हेतु है, सुत 'मनहर' परवीन ॥ १७ ॥ मेरी शिष्य परम्परा भी है अति विद्वान । जिसका आंत संक्षेपसे अब हम करें मखान ॥ १८ ॥ पहले महेन्द्रकुमार' हैं. पूजे 'पवनकुमार' । 'मनरजन' खोजे लल चौथे 'कानाकुमार' ॥ १६ ॥ चौपाई-वि० संयय बीस से अरु सात, भाद्र शुक्ल चउदश अवदात । पूर्व प्रकाशित जप यह हुआ, शुभ उद्यमका मम फल दुभा ॥ २०॥ दोहा-मापबुद्धि परमार, भूल चूक जो होय । सुधी सुधार पदो सदा, जानें सज्जन होय ॥२१॥ सुन्दरलाल शास्त्रो प्राचीन न्याय-माध्यतीर्थ होता होता है चौरे पोड़े इमुजते पीके बिना भनफे बिना सुभुमाते भार भार कम्य भन्न भिन्न २ गयी गुणी. बेश्याना श्यानो मूल्यवृद्धि मेषु पूर्वदुष्कर पूर्व दुध परुष पुरुष नपुसक नपुंसक सिद्ध सिद्धि' राजा शुद्धि-पत्र पृष्ठ पंक्ति शुद्ध पृष्ठ पति परणित परिपात नया जुगान् १७४ ४दि. अरष्टस्य अदुष्टस्य ५८ टि० सर्य स्वयं शुभ १५३ ६दि. दानशकि हीनशकि १२० १५ २६१ १० १२६ १७ ऽस्वथ पथ पदा २दि० ऽप्यवसायकएव ऽव्यवज्ञायत एष २६४ ११ १३८ २टि० मशुचि मशुधि ६६७ २० १४५ ५ भामदनीके केसमान २६८ १० १६. २४ __ समान १६० १० नोडलम् बनोद्भवम् २६३ दिन १६१ २४ चुकी २७४ १७ १६२ - बनाता . २७६ १३ १६३ २टिक कुलमयमानौ कुर्वन्नर्थमानो १६७ १लिक को २४६ मुखवृद्धि बनाती

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