Book Title: Nitivakyamrut
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 444
________________ ૪ नीतिवाक्यामृत मत्तवारणारोहियां जीवितव्यं सन्देहो निश्चितश्चापायः ॥ ४८ ॥ श्रत्यर्थं इयविनादाऽङ्गभङ्गमनापाद्य न तिष्ठति ॥। ४६ || ऋणमददानों दासकर्मणा निई रेत् ॥ ५० ॥ अन्यत्र यतिब्राह्मणक्षत्रियेभ्यः ||५१|| तस्यात्मदेह एवं बैरी यस्य यथालाभमशनं शयनं च न सहते ॥ ५२|| तस्य किमसाध्यं नाम यो महामुनिरिव सः सर्वक्लेश सहः सर्वत्र सुखशायी च ॥५३॥१ स्त्रीप्रति कस्य नामेयं स्थिरा लक्ष्मीः ||५४ || परशुन्योपायेन राज्ञां वल्लभो लोकः ५५ नीचो महस्वमात्मनो मन्यते परस्य कृतेनापवादेन ॥ ५६ ॥ अर्थ - आचार्य-कुल व राजकुल को छोड़कर दायभाग (पैतृक सम्पत्ति प्राप्त करना) के अधि कारियों में देश, काल, कुल, पुत्र, स्त्री व शास्त्र की अपेक्षा भेद होता है । अर्थात् समस्त देश और सभी कुलों में दायाधिकारी एक समान नहीं होते, जैसे केरल देश में पुत्र की मौजूदगी में भी भागिनेय (भानेज) पैतृक सम्पत्ति पाने का अधिकारी होता है, दूसरा नहीं एवं किन्हीं २ कुलों में दुद्दिता-लड़कीका लड़का दायाधिकारी होता है, इत्यादि, परन्तु आचार्य कुल में उसका प्रधान शिध्य (जैन धर्मानुसार दीक्षित मुनि) ही आचार्य पदवी के योग्य होगा, अन्य नहीं इसीप्रकार राजकुल में पट्टरानी का ही ज्येष्ठ पुत्र राज्यपद का अधिकारी होगा, दूसरा नहीं ॥ ४२ ॥ गुरु " ने भी देश-कालादि की अपेक्षा दायभाग का विश्लेषण क्रिया है ॥ १ ॥ ज्यादा परिचय (संसर्गे) से किसका अपमान नही होता ? सभी का होता हूँ ॥ ४३ ॥ यदि नौकर अपराध करे, तो उसका स्वामी दंडका पात्र है, परन्तु यदि वह (माजिक) अपने अपराधी नौकर को नहीं निकाले । अर्थात अपराधी नौकर के छुड़ा देने पर उसका स्वामी सजा का पात्र नहीं ॥ ४४ ॥ बल्लभदेव गुरु में भी अति परिचय और नौकर के अपराधी होने से स्वामी के विषय में उक्त बात की पुष्टि की हैं ।। १-२ ।। ३ 3 समुद्रका बड़प्पन किस कामका १ किसी कामका नहीं, जोकि छोटी वस्तु तृणादिको अपने शिरपर धारण करता है और भारी चढ़ी को डुबो देता है ! उस प्रकार साधारण लोगों को सम्मानित तथा बड़े पुरुषों को तिरस्कृत करने वाला स्वामी भी निभ्ध है ॥ ४४ ॥ Y विष्णुशर्मा ने भी चूड़ामणि के दृष्टान्त द्वारा सेवकों व पुत्रों को यथा-योग्य स्थान में नियुक्त करने का संकेत किया है ॥ १ ॥ १ तथा च गुरुः– देश | घारान्मय चारो स्त्रियापेक्षा समन्वितौ ? । देषो दायादभागस्तु तेषां चैवानुरूपतः ॥ १ ॥ एक दोन सर्व विभवं रूपसम्भवं । यः स्यादद्भुवस्तु सर्वेषां तथा चात् समुद्रवः ॥ ९ ॥ बखदेवः प्रतिपरिचयादवज्ञा भवति विशिष्टेऽपि वस्तुनि प्रायः । ब्रोकः प्रभानवासी कृपे स्नायं समाचति २ तथा ३ तथा च गुहः--य: स्वामी न त्यजेद्भृत्यपराधे कृते सति । तस्य पतिको दएको दुष्टभृत्यसमुद्भवः ॥] ४ तथा विष्णुशर्मा - स्थामेच्छेष नियोज्यते भृत्याश्च निजपुत्रकाः । न हि चूडामणिं पादे कश्चिदेश संन्यसेत् ॥१

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