Book Title: Nitivakyamrut
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 443
________________ प्रकीर्णक समुरेश ४१६ HODHAdamse. . विनाशकाल के निकट आने पर प्रायः सभी की बुद्धि विपरीत (उल्टो) हो जाती है, क्योंकि निकट विनाश वाला व्यक्ति अपने हितषियों की निन्दा व शत्रु की प्रशसा भादि विपरीत कार्य करता है, जिससे प्रतीत होता है कि इसका विनाश निकट है ॥ ३७ ।। भाग्यशाली पुण्यवान् पुरुष को कभी भी धापत्तियां नहीं होती ॥३८॥ देव- पर्वजन्ममें किए हए कम (भाग्य) की अनुकूलता होने पर भाग्यशाली पुरुष को कोन २ मो सम्पत्तियां प्राप्त नहीं होती १ सभी सम्पत्तियां प्राप्त होता है और उसकी कौन २ सी विपत्तियां नष्ट नही होती ? सभी नष्ट हो जाती हैं ॥३६॥ गगं' व हारीत 'ने भी निकट विनाश वाले और भाग्यशाली के विषयमें उक्त बातका समर्थन किया है।॥१२॥ दूसरों की निन्दा करने वाला, चुगलखोर, कृतघ्न-सपकार को न मानने वाला (गुणमेटा) और दोघेकाल तक क्रोध करने वाला ये चारों मनुष्य मनोति के कारण कर्मचारडान हैं ॥ ४०॥ गर्ग ने भी सक्त पार प्रकार के मनुष्यों को कर्मचाण्डाल माना है . औरस ,धर्मपत्नी से उत्पन्न हया पुत्र), क्षेत्रज ( दूसरे स्थान में धर्मपत्नी से सत्पन्न हा), इत्त (गोद लिया हया) कृत्रिम-बन्धन से मुक्त किया हमा, गूदोत्पन्न (गूढ़ गर्भ से उत्पादचा),और अपविद्ध (पति के अन्यत्र चले जाने पर या मरने के बाद उत्पन्न हुआ) यह छह प्रकार के पुत्र दायाद पैतृकसम्पत्ति के अधिकारी और पिता के स्वर्गारोहण के पश्चात् उसकी स्मृति में अनादि (पिया)का दान करने वाले हैं ॥४१॥ अन्य नीतिकारों ' नेभी उक्त छह प्रकार के पुत्र कहे है ।। १-३ ।। दायभाग के नियम, अति परिचय, सेषक के अपराधका दुष्परिणाम, महत्ताका दुषह, रवि भादि की वेला, पशुओं के प्रति वर्माय, मतवाने हामी व घोड़े की क्रीडा, श, म्याधि-ग्रस्त शरीर, साधुजोजन युक्त महापुरुष, लरमो, राजाओं का प्रेमपात्र व नीच पुरुष देशकालकुलापत्यस्त्रीसमापेक्षा दायादविभागोऽन्यत्र यतिराजकुलाम्पां ॥४२॥ मति परिचयः कस्यावहां न जनयति ॥४३॥ मृत्यापराधे स्वामिनी दण्डो यदि भूत्यै न मुञ्चति ।। ४४ ।। अले महत्तया समुद्रस्य यः लघु शिरसा बहत्यधस्ताच्च नयति गुरुम् ४५ रतिमंत्राहारकालेषु न कमप्युपसेवेत ॥१६॥ सुप्छुपरिधिवेबपि लिया विश्वास न गच्छेद ४७ , तथा च गर्ग:-सर्वेष्वपि हि कृत्येषु परीरथेन वर्तते । बता पुस्तिदा शेयो मृत्युना सोऽयोक्तिः .. २ तथा र हारीत:-स्व स्थान प्राक्तन कर्म गुम मनुवर्मणः। अनुदा तस्स सिवि शान्ति सपरवः ।। ३ तथा गर्ग:-पियुमो लिंगकर कतरनो दीर्घरोधात् । एते तु कर्मचाएडामा हात्वा चनः ।। ४ तथा चोकमन्मत्र:-औरसो धर्मपरनीत: संजात: पृद्धिकासुतः मात्र मात: स्वगोत्रेशतरेर वा।। ।। मान्माता पिता बाधुः स पुत्रो दत्तसंज्ञितः हनिमो मोचितो बनधात्मनदेनमा जियागा रामप्रसन्नकोत्पमो गूडमस्तु मुतः स्मृतः । गते मतेऽषयोत्पन्नः भोऽपविरसुतः पौ।।

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