Book Title: Nitivakyamrut
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 400
________________ ३७६ नोतिवाक्यामृत 2 तथा प्रजा आदि का उस पर कोप नहीं है तो उसे शत्रु के साथ युद्ध करना चाहिये। अर्थात् उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि युद्ध करने से उसके राज्य को किसी तरह की कानि तो नहीं होगी || भागुर' ने भी गुण युक्त व निष्कण्टक विजिगीषु को शत्रु से युद्ध करन को लिखा है ॥२॥ जो राजा स्वदेश की रक्षा न कर शत्रुके देशपर आक्रमण करता है, उसका यह का नगेको पगड़ी बांधने के समान निरर्थक है अर्थात् जिस प्रकार नंग की पगड़ी वाच लेन पर भी उसकी निवृत्ति नहीं हो सकती, उसी प्रकार अपने राज्य की रक्षा न कर शत्रु के देश पर हमला करने वाले राजाका भी संकटों से छुटकारा नहीं हो सकता ||४|| · विदुर ने भी विजिगोपु को शत्रु राष्ट्र को नष्ट करने के समान खराष्ट्र के पारपाचन में प्रयत्न करने को कहा है ||६| ५६ ॥ सन्य व कोष आदि की शॉक से तो हुए विजि को यदि शत्रुभूत राजा व्यती नहीं है, ती उसके प्रति आम कर देना चाहिये ऐसा करने से निल विजिग उसी प्रकार शक्तिशाली हा जाता है जिस प्रकार अनेक तन्तुओं के आश्रय से रस्सी में मजबूता आजाती है गुरु ने भी शनिद्दीन राजाको शक्तिशाली शत्रु के प्रति आप शक्तिहीन व अस्थिर के आश्रय से हानि, स्वाभिमानी का कत्तव्य प्रयोजन-वश विजिगीषु का कर्तव्य राजकीय कार्ये व श्रीभाव करना बताया है ॥ ॥ बलवद्भयादबलवदाश्रयणं हस्तिमयादेरण्डाश्रयमिव ।। ५७ ।। स्वयमस्थिस्थिरायणं नद्यां बहमाननवमानस्याश्रयमिव ॥ ५८ ॥ वरं मानिना मरणं न परच्छानुवर्तनादात्मविक्रयः ।। ५६ ।। आयतिकल्याणं सति कस्मिश्चित्सम्बन्धे परसंश्रयः श्रेयान् ॥ ६० ॥ निधानादिव न राजकार्येषु कालनियमस्ति ॥ ६१ ॥ मेत्थानं राजकार्याणामन्यत्र च शत्रोः सन्धिविग्रहाभ्याम् || ६२ ॥ ॐ धीमा गच्छेद् यदन्यो वश्यमात्मना महात्सहते ॥ ६३॥ अर्थ - शक्तिदीन विजिगीष शक्तिशाली ही आश्रय जेबे, शक्तिहीन (निवेल) का नहीं, क्योंकि जो विजिगीषु बलिष्ठ शत्रु के आक्रमणके भयस महीनका आश्रय लेता है, उसका उसी प्रकार हाति होनी है, जिन प्रकार दाथाद्वारात वा उपद्रव के डर से पड़ पर चढ़ने दाजे मनुष्य की तत्काल हानि हाता है । अथात् जिस प्रकार हाथी के श्राक्रमण के भय से बचाव करने वाला निस्सार एण्ड के वृक्ष पर चढ़ने से परण्ड क साथ र पृथ्वी पर गिर जाता है और पश्चात् हावी द्वारा न कर दिया जाता है, उसी प्रकार बलवान् शत्र के अक्रम के डर से बचने वाला विजिगीषु शक्तिद्दानका आश्रय लेने से उस के साथ २ नष्ट कर दिया जाता है - बलिष्ठ शत्रु द्वारा मार दिया जाता है। सारांश यह है कि एरण्ड समान निस्कार ( शक्तिहीन के आश्रय से भविष्य में होने वाला अनर्थ तत्काल हो जाता है ॥ ५७ ॥ : तथा च भागुरियुक्तोऽपि भृशलोऽपि यायाद्विद्विषोपरि ? यतेन हि राष्ट्रस्य वद्रवः शत्रो ऽपरे ॥ १ ॥ २ तया च विदुरः एतयः परमः कर्तव्यः स्वराष्ट्रपरिपालने ॥ ॥ ३ तथा च गुरु – स्याय शक्तिस्तु विजिन नावान् बलात् ॥ १ ॥ -

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