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नौतिवाक्यामृत
लोक में सत्पुरुष व असत्पुरुषों के सभी व्यवहार उनके द्वारा कहे हुए वधनों पर निर्भर होते हैं, इसलिये नैतिक व्यक्ति को अपने कहे हुए वचनों का पालन करना चाहिये। जिसके वचन मानसिक उपयोग के विना भी कहे हुए लिखि के समारयामा एक पोते, पदी दुरुष लोक में समस्त मनुष्यों द्वारा पज्य होता है।८०||
शुक्र ' ने भी सत्यवादी को समस्त मनुष्यों द्वारा पूज्य माना है ॥ १ ॥
शिष्ट पुरुषों द्वारा कही जाने वाली नैतिक बाणी साक्षात् सरस्वती के समान प्यारी प्रतीत होती है।॥१॥
गौतम' भी सज्जनों की मासि-युक्त वाणी को साक्षास् सरस्वती के समान मानता है ॥३॥ जो प्रामाणिक (सत्य) वचन नहीं बोलते, उनकी ऐहिक वा पारलौकिक क्रियाएँ (कर्तव्य) निष्फल होती हैं ।। ८२॥
गौतम " ने भी मिध्यावादी को ऐहिक वा पारलौकिक कल्याण से वंचित कहा है ।। १ ।।
लोक में विश्वासचात से बढ़कर दूसरा कोई महान् पाप नही अतः शिष्ट पुरुष कदापि किसो के साथ विश्वासघात न करे ।।३।।
अङ्गिर' ने भी विश्वासघाव को महान् पाप पताकर उसका स्याग कराया है ।। १ ॥
विश्वासघाती अपने ऊपर सभी लोगों का अविश्वास उत्पन्न करता है अधात पस पर कोर भी विश्वास नहीं करता ॥ ८४ ॥
भ्य ' ने भी विश्वासघाती के ऊपर इसके माता-पिताका भी विश्वास न होना बसाया है॥१॥
भूती प्रतिज्ञा करने वालों द्वारा खाईजाने वाली भूलो सौगन्ध उनकी सम्मान-हानि कर डालती है || ८५ ।।
किसी विद्वान के उद्धरण का भी यही अभिप्राय है॥१॥
सैन्य की न्यूह -रचना के कारण व ससकी स्थिरता का समय, शिक्षा, शत्र के नगर में प्रवित होने का अवसर, कूट युद्ध व तूष्णी युद्ध का स्वरूप व अकेले सेनाध्यक्ष से हानि
बलं बुद्धिभूमिहानुलोम्य' परोद्योगश्च प्रत्येक बहुविकल्पं दण्डमण्डलाभोगा संहतव्यूह
तथा च शुत्रः-सज पूज्यो सोकानां पाक्यमपि सासनं । विस्तीर्ण प्रतिवं च लिलि शासनं यथा ॥ ॥ २ सथा च गौतमःमोत्यात्मिकात्र या पाणी प्रोम्यते साधुमिगेन। प्रस्पा मारती वा विकल्पो मास्तिरचम ॥१ ३ तथा च गौतमः-न सेपामिह जोकोऽस्ति परोऽस्ति दुरात्मना । रेष वा प्रोक्तमम्पया आवते पुमः ।। * तथा पाशिरः-विश्वासघातकावन्यः परः पावकसंयुतः । न विद्यते धराये तस्मात्तं दूरतसबमेत् ॥1॥ ५ तथा च रेभ्यः-विश्वासपासको यः स्पात्तस्य माता पिता विश्वास मोत्येव भनेम्वन्येषु का 1.4 || ६ तथा थोक्तम्-बदसत्यं जाने कोशपानं हि निश्वितंकरोतिपुर्शत्रामा पास गोत्रसमजवं॥1॥