Book Title: Nitivakyamrut
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 430
________________ नीति ष: क्या मृत गुरु' ने भो उक्त प्रकार विजिगीषु को शत्रुद्वारा दातेजाने का संकेत किया है ॥ १ ॥ जब विजिगीषु हाथी अथवा जंपान चाहन विशेष ) पर आरूढ़ हुआ शत्रु-भूमि में प्रविष्ट होता है, तो उसे क्षुद्र उपद्रव शत्रु द्वारा मारा जाना आदि का भय नहीं होता ॥ १०५ ॥ २ भागुरि * ने भी उक्त प्रकार से शत्रु-भूमि से प्रस्थान करने वाले विजिगीषु को सुरक्षित कहा है ।। १ ।। इति युद्ध समुददेश | ४०६ श्रेष् ३१ - विवाहसमुद्द ेश । काम संत्रनको योग्यता, विवाह का परिणाम, लक्षण, ब्राह्म, देव आदि चार विवाहों का स्वरूप HT द्वादशवर्षा स्त्री पोडशः पुमान् प्राप्तव्यवहारों भवतः || १ || विवाहपूर्वी व्यवहारश्चात्कुलीनयति ॥ २ ॥ तितारामग्नदेव द्विसाक्षिकं च पाणिग्रहणं विवाहः || ३|| स ब्राह्यो विवाहो यत्र वरायालेकृत्य कन्या प्रदीयते ॥ ५ ॥ स देवो यत्र यज्ञार्थमृत्विजः कन्याप्रदानमेव दक्षिणा || २ || गोमिथुनपुरःसर ं कन्यादानादाः || ६ || त्वं भवस्य महाभागस्य सहधर्मचारिणीति' विनियोगेन कन्याप्रदानात् प्राजापत्यः एते चत्वारो धर्म्या विवाहाः ॥ ८ ॥ अ - १२ वर्ष की स्त्री और १६ वर्ष का पुरुष ये दोनों काम सेवन की योग्यता वाले होते हैं ||१|| विवाहपूर्वक किये जानेवाले कामसेवन से चारों वर्ण की सन्तान में कुलीनता टन्न होती है ॥ राजपुत्र' जैमिनि* ने भी कामसेवन की योग्यता व कुलोन एवं शुद्ध सन्तानोत्पत्ति उक्त प्रकार समर्थन किया है ।। १–२॥ युक्ति से कन्या का वरण निश्चय करके अग्नि देव व ब्राह्मण को साची पूर्वक वर द्वारा कन्या का जो पाणिग्रहण किया जाता है उसे विवाह कहते हैं || ३ || विवाहके आठ भेद हैं- श्राम्य, देव अर्थ, प्राजापत्य, गान्धर्व, आसुर पैशाच और राक्षस विवाह । उनमें से जिसमें कन्या के पिता आदि १ तथा च गुरुः- परभूमिं प्रविष्टो व पारदारी परिभ्रमेत् । इये स्थितो या दोन्तायां घातकैईन्यते हि सः ॥ १ ॥ २ तथा च भगुरिः - परभूमो महीपालः करियं यः समाश्रितः । भूकंपामध्यास्य तस्य कुर्वन्ति किं परे ॥१॥ ३ तथा च राजपुत्रः- यदा द्वादशवर्षा स्थानारी षोडशवार्षिकः । पुरुषः स्यात्तदा रास्ताभ्यां मैथुनजः परः ॥ १ ॥ ४ तथा जैमिनि:- सुवर्णकन्यका यस्तु विवाइयति धर्मतः । सन्तानं तस्य शुद्धं स्यान्नाकृत्येषु प्रवर्तते ॥ १॥

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