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xोक समु२३ मिश्या नहीं कहे जा सकते ॥ १८ ॥ प्राण-धात के समय उनकी रक्षार्थ कहा हुभा असत्य वनन असत्य नहीं भी ई । १६ ।।
बादरायण'ने गुरुतर प्रयोजन माधक वचनों को सत्य और व्यास ने भी प्राण वध प्रादि पांच अवसरों पर प्रयुक्त किये हुये पांच प्रकार के मिथ्या भाषण को निपाप सत्य बताया है ।। १.२॥
___ जब कि पापी पुरुष धन के लिये माता का भी घात कर डालता है, तब क्या वह उसके लिये मिध्याभाषण नहीं करता ? अवश्य करता है। अत: धन के विषय में किसी पर विश्वास नहीं करना चाहिये चाहे वह अनेक प्रकार की शपथ भी ग्यावे ।।२०।।
शुक्र ने भी उक्त प्रान्त देते हुये उक्त रात का समर्थन किया है।
भाग्याघीन वस्तुए, रतिकालीन पुरुष-वचनों को मीमांसा, दाम्पत्य- की अवधि, युद्ध में पराजय का कारण, स्त्री को सुखी बनाने सलाम, लोगों को यिनयनत्रता को मामा, अनिष्ट का प्रतीकार, स्त्रियों के बारे में व साधारण मनुष्य से लाभ, एव ने व युद्ध संबन्धो नैतिक विचारधारा
सत्कलासत्योपासनं हि विवाहकर्म, देवायत्तस्तु वधूवरयानिहिः A ॥ २१॥ रतिकाल यन्नास्ति कामातों यन्न व ते पुमान न चैतत्प्रमाणं ।। २२ ।। तायतस्त्रीपुरुषयोः परस्पर प्रीतिर्यावन्न प्रातिलोम्यं कलहो रतिकतवं च ।। २३ ।। तादास्विकालस्य कुनो रणे जयः प्राणार्थः स्त्रीपु कन्याणं वा ॥ २४ ॥ सावत्सर्वः सर्वस्यानुवृत्तिपरो यावन्न भवति कृतार्थःB ॥ २५॥ अशुभस्य कालहरणमेव प्रतीकारः ।। २६ ॥ पक्वान्नादिव स्त्रीजनादाहोपशान्तिरेव प्रयोजनं किं तत्र रागविरागाम्यां ॥ २७ ॥ तृणेनापि प्रयोजनमस्ति किं पुनर्न पाणिपादवता मनुष्येण || २८ ।। न कस्यापि लेखमत्रमन्येत, लेखप्रधाना हि राजानस्तन्मूलत्वात् सन्धिविग्रहयाः सकलस्य जगद्व्यापारस्य च ।। २६ ।। पुष्पयुद्धमपि नीतिवेदिनी नेच्छन्ति कि
पुनः शस्त्रयुद्ध ।। ३०॥ १ तथा च पादरायणः-तदसत्यमपि नासत्यं यदव परिमीयते । गुरुकार्यस्य हानिक ज्ञात्वा नीतिरिति स्फुटम् ।।।। २ तथा व व्यासः-नासत्ययुक्त वचनं हिनस्ति, न स्त्रीषु राजा न विवाहकाले ।
प्राणात्यये सर्वधनापहारी, पंचानसाम्याहरपातकानि ॥ तथा स शुक्र:-अपि स्यादि मातापि तो हिनस्ति जनोऽधनः । कि पुन: कोशपाना स्मार्थे न विश्वसत् । A 'समासस्योपायनं किं ? विवाहकम' इत्यादि पाठान्ता मु. मूः प्रति में वर्तमान है जिसका अर्थ यह है कि समस्त
झूठी मैंट क्या है ? विवाहकर्म; उसमे दम्पतियों का निर्वाह (जीवन-सा) भाग्याधीन है अर्थात् भाग्य अनुकूम होने पर ही उनका निर्वाह होसकता है, अन्यथा नहीं | --संपादक । Bइसके पश्चात् मु० मू. प्रति में 'सहसम्भवो देहोऽपि नामुत्र सहानुयायी किं पुनरन्यः ऐसा विशेष पाट वर्तमान है, जिसका अर्थ मह है कि जीवके साथ उत्पन्न हुश्रा शरीर भो जब इसके साथ दूसरे मन में नहीं जाना सब क्या अन्य पदा जा सकते हैं ? नहीं जासकते || ||-सम्पादक