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व्यवहार समुदेश
ससकी उपेक्षा करना ( उस स्थान को छोड़कर अन्यत्र चले जाना ) श्रामन कहलाता है ॥४॥ बलिष्ठ शत्र हरा देशपर आक्रमण होने पर जो उसके प्रति आत्मसमर्पण किया जाता है, उसे 'श्रय' कहते हैं ॥४८ मावान और नियल दोनों शत्रुओं द्वाग अाक्रमण किये जाने पर विजिगपु को बजिष्य के साथ सम्धि और नियंस के साथ युद्ध करना चाहिये अश्या यनिष्ठ के साथ मन्यिपूर्वक जो युख किया जाता है
से धीभाव' कहते है 11५६||जब विजिगीषु अपन से यनिष्ठ शत्रुके साथ पहिले मित्रता स्थापित कर लेता है और फिर कुछ समय बाद शत्रु क होन शक्ति हो जाने पर उसीसे युद्ध छेड़ देता है उस धुद्धि-माश्रित 'वैधीभाव' कहत है, क्योंकि इस निमितीपुकी विचित बनी है !!
सन्धि, विप्र-सादि के विषय में विजिगीर का कप्तव्यदीयमानः पणबन्धन मन्धिमुपेयान यदि नास्ति परपा विपणितेऽर्थे मर्यादोन्लंघनम् ॥५१॥ अभ्युच्चीयमानः परं विगृह्णीयायदि नास्त्यान्मबलेषु क्षोभः।।५२) न मा परा हन्तुनाई पर हन्तुशक्त इन्यासीन यद्यायल्यामस्ति कुशलम् ॥५३॥ गुणातिशययुक्तो यायाद्यदिन सन्ति राष्ट्रकण्टका मध्ये न भवनि पश्चात्त्रोधः ॥५४॥ स्वमएडलमपरिपालयतः परदेशाभियोगो विवसनस्य शिरोवेष्टनांमय ॥५॥ रज्जवलनमित्र शक्तिहीनः संश्रयं कुर्यायदि न भवति परसामामिपम् ।।५६।।
जब विजिगीष शत्र को अपेक्षा होनशक्ति वाला हो, तो उसे शत्र राजा के लिये प्रायिक दंड ( धनादि) दकर उस हालत में सम्धि कर लेनी चाहिये जबकि उसके द्वारा प्रतिज्ञा की हुई व्यवस्था में मर्यादा का उल्लंघन न हो। अर्शन शपथ-अदिग्विलाकर भविष्य में विश्वासघात न करने का निश्चय करने के उपरान्त ही सन्धि करनी चाहिये, अन्यथा नहीं ॥५१॥
शुक्र' ने भी हीन शनिवाले विजिगीषु को शत्र के लिये आर्थिक दंड देकर मन्धि करना असत्या है ॥५॥
यदि विजिगीप शत्रु राज्ञा मे मैन्य व कोप आदिमें अधिक शक्तिशाली है और यदि उसकी सेनामें क्षोभ नहीं है, तब इसे शत्र से युद्ध में देना चाहिये ।।२।।
गुर ने भी लिष्ट, विश्वासपात्र व मैन्यसहित विजिगीपुको युद्ध करने का निर्देश किया है।
यदि विजिगीष शत्र द्वारा भविष्यकालीन अपनी कुशलता का निश्चय कर ले कि शत्र मुझे न नहीं करेगा और न मैं शत्र को, तब उसके साथ विप्रहनकर मित्रता ही करनी चाहिये ||१३||
जैमिनि ने भी मामीन शत्रु गजा के प्रति युद्ध करने का निषेध किया है ||१० विजिगीपु. ५दि सर्वगुण सम्पन्न ( प्रचुर सैन्य व कोप शक्तियुक्त) है एवं उसका राज्य निष्कएक है
तथा च शुक:- होयमानेन दातम्यो दएकः शमोजिगोपुणा ।बज्ञयुकेन याकार्य है समं निधिमिनिरपषों? ॥ २ तथा च गुरुः-यदि स्यादधिका शन्नोविजिगीषु निबौ: । सोमन रहित: कार्यः शत्रणा सह विमहः ॥ . । तया च जैमिनि:- न विग्रह स्वयं यांदासोने परे स्थिते । बलात् येनापि यो न स्यादायस्यां घटितं उभं ॥ १ ॥