Book Title: Nitivakyamrut
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 403
________________ व्यवहार समुद्देश माना गया है ॥ ६८ ॥ कुलपरम्परा से चलो आनेवाली पृथिवी किसी राजा की नहीं होती, बल्कि वह वीर पुरुष द्वारा ही भोगने योग्य होती है, अतः राजा को पराक्रमशोल होना चाहिये ।। ६६ ।। शुक' ने भी कहा है कि वंशपरंपरा से प्राप्त हुई पृथिवी वीरों को है, कायरों की नहीं ॥ १ ॥ રમ ¶ 14 ** सामआदि चार उपाय, सामनीतिया भेदपूर्वक लक्षण, आत्मोपसन्धान रूप सामनीतिका स्वरूप, दान, भेद और दंडनीत्रि का स्वरूप, शत्रु के दूत के प्रति कर्त्तव्य व उसका दृष्टान्त द्वारा स्पष्टीकरण एवं के निकट सम्बन्धी के गृहप्रवेश से हानि शत्रु, सामोपप्रदानभेददण्डा उपायाः ||७० || तत्र पंचविधं साम, गुणसंकीर्तनं सम्बन्धोपाख्यानं परोपकारदर्शनमायति प्रदर्शनमात्मोपसन्धानमिति ॥ ७१ ॥ यन्मम द्रव्यं तद्भवता स्वकृत्येषु प्रयुज्यतामित्यात्मोपसन्धानं ॥ ७२ ॥ बहर्थ संरक्षणायान्पार्थप्रदानेन परप्रसादनमुपप्रदानं।७३ यांगतीक्ष्णगूढपुरुषोभपवेतनैः परवलस्य परस्परर्शकाजननं निर्भर्त्सनं वा भेदः ॥७४॥ वधः परिक्लेशोऽर्थहरणं च दण्डः ॥ ७५ ॥ शत्रोरागतं साधु परीचय कन्याण बुद्धिमनुगृहीयात् १७६ किमररायजमीपधं न भवति चेमाय ||७७ | गृहप्रविष्टकपोत व स्वल्पोऽपि शत्रु सम्बन्धो लोकतंत्र मुद्वासयति ॥७८॥ , अर्थ - शत्रुभूत राजा व प्रतिकूल व्यक्ति को वश करने के चार उपाय हैं १-साम, २- उपप्रदान, ३-भेद व ४-दंडनीदि ॥३०॥ सामनीतिके पांच भेद हैं-गुण संकीर्तन - प्रतिकूल व्यक्ति को अपने वशीभूत करने के जिये उसके गुणों का उसके समक्ष कथन द्वारा उसकी प्रशंसा करना, २-सम्बन्धोपाख्यान - जिस उपाय से प्रतिकूल दक्त की मित्रता दृढ़ होती हो, उसे उसके प्रति कहना; ३ विरुद्ध व्यक्ति की भलाई करना, ४ - आयविप्रदर्शन - हम लोगों को मैत्री का परिणाम भविष्य जीवन को सुखी बनाना है' इस प्रकार प्रयोजनार्थी को प्रतिकूल व्यक्ति के लिये प्रकट करना, और ५- आत्मोपसन्धान - 'मेरा धन आप अपने कार्य में उपयोग कर सकते हैं इस प्रकार दूसरे को वश करने के लिये कहना ||७|| " व्यास ने भी कहा है कि जिस प्रकार कर्कश वचनों द्वारा सज्जनोंके चित्त त्रिकत नहीं होते, जमी प्रकार सामनीति से प्रयोजनार्थी का कार्य विकृत न होकर सिद्ध होता है, और जिस प्रकार शक्कर द्वारा शान्त होने वाले पित्त में पटोल ( ओषधि विशेष ) का प्रयोग व्यर्थ है, उसी प्रकार सामनीति से सिद्ध होने वाले कार्य में दंडनीति का प्रयोग भी व्यर्थ है ||२|| शत्रुको वश करने के अभिप्राय से उसे अपनी सम्पत्तिका उपभोग करने के लिये विजिगीषु द्वारा इ कार का अधिकार दे दिया जाता है 'कि यह सम्पत्ति मेरी है, इसे आप अपनी इच्छानुसार कार्यों में १ तथा शुक्रः — कातराणां न वश्या स्वाद्यद्यपि स्यात् क्रमागता । परकीयानि चात्मांचा विक्रम यस्य भूपतेः ॥ १ ॥ २ तथा च व्यासः - साम्ना यरिसद्धिदं कृत्यं तत्तो नो विकृति यजेत् । सज्जनानां यथा वित्तं कुरुक्क रवि कोसितैः ॥ १ ॥ साम्य यत्र सिद्धि दो बुधेन विनयोग्य दिशा शाम्यति तकि एटोजेन ॥ २ ॥

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