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युद्ध समुश
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यल्लभदेव' व हारत ने भी सामनोनि द्वारा सिद्ध होने वाले कार्यों को दंडनोति द्वारा सिद्ध करने का निषेध किया है ॥१-२||
मूर्ख नुष्य थोड़े से खचे के डर से अपना सर्वनाश कर डालता है। प्राकालिक अभिवाब यह है कि मूर्ख राजा मे जन प्रतिद्धन्दी (शघ्र ) सामनोति से कुछ भूमि आदि मांगता है, तब वह थोड़े से खर्चे के इर से जसे कुछ नहीं देता, पश्चात् उसके द्वारा आक्रमण किये जाने पर सर्वनाश कर बैठता है. अतः नैतिक व्यक्ति या विजिगीप अल्प व्यय के डर से अपना सर्वनाश न करे ।।२७।।
बनम देव मे भी शास-दीन मुखं राजा के विषय में इसी प्रकार कहा है ॥१॥ कौन बुद्धिमान मनुध्य महसूल वेने के डर से अपना व्यापार छोड़ता है कोई नहीं ||२८||
कौशिक ने भी बद्विमान पुरुष को थोड़े से टैक्स श्रादि के भय से व्यापार न छोड़ने के विषय में कहा है ॥१॥
प्रशस्तपय त्याग, बलिष्ठ शत्र के लिये धन न देने का दु म, धन बनाता का वन देने मे आर्थिक-क्षति, शत्रु द्वारा श्राकभ किये हुए राजा की स्थिति समर्थक दृष्टान्त माला, स्थान-भ्रष्ट राजा व समष्टि का माहात्म्य -
स किं पयो यो महान्तमर्थ रक्षति ।। २६ ॥ पूर्ण सरस--सलिलस्य हि न पीबाहादपरोऽस्ति रक्षणोपायः ॥३०॥ अप्रयच्छतो बलवान् प्राणैः सहाथै गृहाति ॥३१॥ वलवति सीमाधिवेऽर्थ प्रयच्छन् विवाहोत्सवगृहगमनादिमिर्पण प्रयन्छन् ।३२ ॥ आमिपमथेमप्रयच्छताऽ. नवधिः स्यान्निवन्धः शासनम् || ३३ ॥ कृतसंघातविधानीऽरिभिविंशीणेयथा गज हव कस्य न भवति साध्यः ॥ ३४ ॥ विनि:सावितजले सरसि विषमोऽपि ग्राहो जलव्यालबत् ॥३५॥ वनविनिर्गतः सिंहाऽपि श्रृंगालायतेः ॥ ३६ ।। नास्ति संघातस्य नि:मारता किन्न स्व
३ तथा च बलभदेवः साम्नैय यन्त्र सिरिस्तन न दण्डो विनियोज्य: । पित्तं यदि शर्करया शाग्यप्ति ततः कित्तस्पटोलेन २ तथा व हारीत-- गुरास्वादनतः शनि यदि गाग्रस्य जायते । प्रारयिलक्षणा नाम तनमयति को विषं ॥ १ ॥ ३ तथा च पल्भ त्रः-होनो नपोऽऽप मइते नपाय यायाचितो नैत्र ददाति साम्ना ।
कदर्यमाणेन ददति खार सेषां स चूर्णस्य पुनर्ददाति ॥ १ ॥ ४ तथा व कौशिकः-यस्प बुद्धिर्भवेत काचित् स्वल्पापि हृदये स्थिता । न भार न्यजेत् सार स्वरूपदानकृतापात् A इसके पश्चात मुमू प्रति में 'स्वयमल्पवलः कोश-देश दुर्गभूमिरतियेदयंश्च यदि शत्रुर्वेशं न परित्यजेत्' इतना
अधिक पाठ वर्तमान है. जिसका अर्थ यह है कि अपम्य होने पर भी कोश, देश व दुर्गभूमिसे युक्त और जिसका बलिष्ठ शत्रु उक्त बातों से अपरिचित है, उस राजा को केवल शस्त्र-कृत उपद्रव के भय से अपना देश छोड़कर स्थान __ भ्रष्ट होना उचित नहीं ॥ ॥ B इसके पश्चात् विछिन्नोपान्तप्रताने वंशे फिमस्त्याकर्षस्य अलेश' ऐसा मुक मू. प्रति में अधिक पार है, जिसका अर्थ यह है कि जिसप्रकार जिसके समीपवर्ती-बगल चगजके वापों का समूह काट दिया गया है. उस बांसको खोबने