Book Title: Nitivakyamrut
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 410
________________ १८६ कर किया जाता है, यवः नैविक पुरुष को न्यायोचित साधनों द्वारा धनसंचय करना चाहिये ।। १०२ ।। पत्रि' ने भी अन्याय संचित धन राजा द्वारा पूर्वसंचित धन के साथ २ जन्न किये जाने के विश्य में लिखा है ॥। ९ ॥ अर्थ लाभ ( धन प्राप्ति ) तीन प्रकार का है। -नवीन कृषि व व्यापार्यादि साधनों द्वारा नवीन मन की प्राप्ति २ – भूतपूर्व - पूर्व में उक साधनों द्वारा प्राप्त किया हुआ न ३ परम्परा से प्राप्त किया हुआ धन, ये उक्त दोनों साथ श्रेष्ठ हैं ।। १०३ ॥ - पिता वगैर शुक्र* ने भी कोनों प्रकारका बतादे ॥ १ ॥ नीतिवाक्यामृत ......... ३० युद्ध समुद्द ेश | मन्त्री व मित्र का दुषख भूमि- रक्षार्थ विजिगीषु का कर्त्तव्य, शस्त्रयुद्ध का अवसर बुद्धि-युद्ध व बुद्धि का माहात्म्य स किं मंत्री मित्र वा यः प्रथममेव युद्धोद्योगं भूमित्यागं चोपदिशति, स्वामिनः सम्पादयति महन्तमनर्थसंशयं ॥ १ ॥ संग्रामे को नामात्मवानादादेव स्वामिनं प्राणसन्देह तुलायामारोपयति ॥ २ ॥ भूम्यर्थं नृपाणां नयो विक्रमश्च न भूमित्यांगाय ॥ ३ ॥ बुद्धियुद्ध ेन परं जेतुमशक्ता शस्त्र युद्धमुपक्रमेत् ॥ ४ ॥ न तथेषवः प्रभवन्ति यथा प्रज्ञावतां प्रज्ञाः ॥ ५॥ दृष्टेऽप्यर्थे सम्भवन्त्यपराह्न पत्रो धनुष्मतोऽष्टमर्थं साधु साधयति प्रज्ञावान् ॥ ३ ॥ भूयते हि किल दूरस्थोऽपि माधवस्तिा कामन्दकीयप्रयोगेण माधवाय मालतीं साधयामास ॥ ७ ॥ प्रज्ञा समोषं शस्त्र कुशलबुद्धीनां ॥ ८ ॥ प्रज्ञाहताः कुलिशया इत्र न प्रादुर्भवन्ति भूमिभृतः ॥ ६ ॥ अर्थ- -बह मंत्री व मित्र दोनों निद्य-रात्र के समान है, जो शत्रु द्वारा आक्रमण किये जाने पर अपने स्वामीको भविष्य कल्याण-कारक अन्य सम्धि आदि पावन बताकर पहिले हो युद्ध करने में प्रश्नशील होने का अथवा भूमिका परित्याग कर दूसरी जगह भाग जानेका उपदेश देकर उसे महान अन (प्राथ सम्देहके खतरे में बाल देते हैं ।। १ ।। १ तथा चात्रि: प्रम्यायोपार्जितं विसं पो गृहं समुपानयेद खाते भूभुज्य वस्त्र गृहगेन समम्बिम् ॥ १॥ शुक्रः- शिवो नयोऽर्थः स्वावपूर्णस्तथापरः । पितृपैतामहो वस्तु प्रामाः शुभावद्दा:

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