Book Title: Nitivakyamrut
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 411
________________ द्ध समु ३८७ गर्ग ने भी रात्र के उपस्थित होने पर राजाको युद्ध व भाग जाने की सलाह देनेवाले सचिवको शत्रु हा है ॥ ५ ॥ 64441424 .. 44444............... कौन बुद्धिमान् सचिव अपने स्वामी को सबसे पहले पर चढ़ायगा ? कोई नहीं। सारांश यह है कि शत्रु द्वारा संधिके लिये प्रेरित करें, उसमें असफल होने पर युद्धके लिये प्रेरित करे ॥ २ ॥ गौतम ने भी अन्य उपाय असफल होने पर युद्ध करने का संकेत किया है ॥ १ ॥ युद्धमें प्रेरित कर उसे प्राण-संदेह रूप तराजू हमला कियेजाने पर पूर्व में मंत्री अपने स्वामोको राजाओं की नोति व पराक्रमकी सार्थकता अपनी भूमि की रक्षा के लिये होती है, न कि भूमि त्याग के लिये, अतः उसका त्याग कर्तव्य-दृष्टि से किस प्रकार ग्राह्य हो सकता है ? नहीं हो सकता ॥३॥ शुक्र भी कहा है कि राजाओंको भूमि - रक्षार्थं अपनो नोति व पराक्रम हा उपयोग करते हुए प्रा जाने परभी देशत्याग नहीं करना चाहिये ।। १ ॥ जब विजिगीष बुद्धि-युद्ध - सामादि उपाय के प्रयोग द्वारा शत्रु पर विजयश्री प्राप्त करनेमें असममण . हो जाय, तब उसे शस्त्र युद्ध करना चाहिये ॥ ४ ॥ गर्ग ने भी बुद्धि-युद्ध निरर्धक होने पर शत्रु के साथ शस्त्र युद्ध करनेका संकेत किया है ॥ १ ॥ जिस प्रकार बुद्धिमानों की बुद्धियां शत्र के उमूलन करने में समर्थ होती हैं उस प्रकार बीर पुरुष द्वारा प्रेषित पाण समर्थ नहीं होते ॥ ५ ॥ गौतम का उद्धरण भी तीच वाकी अपेक्षा विद्वानोंकी बुद्धिको शत्रु वधमें विशेष उपयोगो बताता है ॥ १ ॥ धनुर्धारियों के वाण निशाना साधकर चलाये जाने पर भी प्रत्यक्ष में वर्तमान मे करने में असफल हो जाते हैं परन्तु बुद्धिमान पुरुष बुद्धिबलसे त्रिना देखेहुए पदार्थ भी मलीभांति सिद्ध कर लेता है शुक्र' का उद्धरणभी इसीप्रकार बुद्धिको अष्टकार्य में सफलता उत्पन्न करने वाली बताता है ॥ १ ॥ महाकवि श्री भवभूति विरचित मालतीमाधव नामक नाटक में लिखा है कि माधवडे पिता देवरात ने बहुत दूर रह कर के भी कामन्दकी नाम को सन्यासिनी के प्रयोग द्वारा इसे मानवी के पास भेज कर अपने पुत्र माधव के लिये 'मालती' प्राप्त की थी, यह देवरात की बद्धि-शक्ति का ही माह म्य था ॥ ७ ॥ विद्वानों की बुद्धि ही शत्रु पर विजय श्री प्राप्त करने में सफल शस्त्र मानी गयी है, क्योंकि 1 तथा च गर्गः - उपस्थिते रिषी मंत्री युद्धं बुद्धि' ददाति यः । मंत्रिरूपेण वैरीस देशत्यागं च पो भवेत् ॥ १ ॥ २ तथा च गौतमः— उपस्थिते रिपौ स्वामी पूर्व युद्धे नियोजयेत् उपाय दापयेद् व्यर्थे गते परवानियोजयेत् ॥ १ ॥ ३ तथा च शुक्रः ----भूम्यर्थे भूमिपैः कार्यो नयो विक्रम एव च । देशत्यागो न कार्यस्तु भावात्माऽपि संस्थिते ॥ 1 ॥ ४ तथा च गर्गः ---युद्धं बुद्धयात्मकं कुर्यात् प्रथमं शत्रुया सह । व्यर्थेऽस्मिन् समुध्यन्ने] ततः स्मरणं भवेत् ॥ s i ५ तथा च गौतमः न तथा शरारतीच्यणाः समर्थाः स्यू रिपो दधे । यथा बुद्धिमतां प्रज्ञा तस्माकां सन्मियोजयेत् ॥ १॥ ६ तथा च शुक्रः—धानुष्कस्य शरो पर्यो लचयेऽपि यावि छ । अष्टान्यपि कार्याणि बुद्धिमान् सम्प्रसाधयेत् ॥१॥

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