________________
८४
नोतिवाक्यामृत
भागुरि । विद्वानने लिखा है कि जिस प्रकार पक्षीगण कुलीन (पृथ्वीमें लीन) और ऊंचेभी पेड़को . सूखा-फल-पुष्प विहीन देखकर दूसरे फल-पुष्पयुक्त पेड़ पर चले जाते हैं, उसी प्रकार राजकीय सेवक बोग-पदाधिकारी कुलीन और उन्नतिशील राजाको छोड़कर दूसरे (धनाट्य) की सेवा करने लगते हैं ॥१॥
कोषविहीन राजा देशवासियों के निर्दोष होने पर भी उन्हें अन्यायसे दण्डित कर जुर्माना आदि द्वारा ग्नसे प्रचुर धनराशि प्रहण करनेको सतत प्रयत्नशील रहता है। जिसके फलस्वरूप अन्यायसे पोदित प्रजा वसे भग जाती है, जिससे राष्ट्रमें शून्यताहो जाती है। सारांश यह है कि राजाको न्यायोचित उपायों से कोष सि करते रहना चाहिये ॥६॥
गौतम विद्वान्ने भी उपरोक्त कथनकी पुष्टि की है ॥१॥
नीतिक पुरुष राज-कोशको ही राजा मानते हैं, न कि उसके शरीरको। क्योंकि कोशःशून्य होनेसे बह शत्रु ओं द्वारा पीड़ित किया जाता है ॥७॥
रैभ्य- विद्वन्ने भी इसी प्रकार कहा है ॥१॥ जिसके पास धन-राशि है वही विजयलक्ष्मी प्राप्त करता है ।।
निर्धनकी कड़ी आलोचना, कुलीन होने पर भी सेवाके योग्य न माने जाने वाले राजाका वर्णन, धनका माहास्य, और मनुष्यको कुलीनता और बड़प्पन व्यथ होने के कारण
धनहीना कला गापि परित्यज्यते किं पुनर्नान्यः।।६॥ न खलु कुलाचाराम्यां पुरुषः सरों. ऽपि सेव्यतामेति किन्तु वित्तेनै। ॥१०॥ स खलु महान् कुलीनश्च यस्यास्ति धनमनूनं ॥११॥ किं तया कुलीनतया महत्वया वा या न सन्तयति परान् ॥१२
भर्म-निर्धनको, जबकि उसे स्वयं नसकी पत्नी भी छोड़ देती है, वो फिर सेवकों द्वारा उसे छोरे जाने में विशेषता ही क्या है ? सारांश यह है कि संकट पड़ने पर निर्धनकी कोई सहायता नहीं करता । भवः विवेको पुरुषको न्यायोचित उपायों द्वारा धन-संचय करनेमें प्रयत्नशील रहना चाहिये ॥६॥
सेवक लोग कुलीन और सदाचारी होनेसे ही मनुष्यको श्रेष्ठ या सेवा-योग्य नहीं समझने गति पनाम्य होनेसे ही से श्रेष्ठ मानते हैं। संसारमें दरिद्र व्यक्ति के कितनेही कुलीन और सदाचारी होने पर
की सेवार्य कोई प्रस्तुत नहीं होता, क्योंकि वहां जीविकोपार्जनका साधन (धन) नहीं है, जबकि नोच. कुनमें सपा और चारित्रप्रष्ट होनेपर भी धनाढ्य व्यक्तिकी जीविका हेतु सभी लोग सेवा करते हैं। निष्कर्ष यह किकुलीन भौर सपापारी होने पर भी राजाके लिये राज-सत्रको नियमित र व्यवस्थित रूपस चलाने के लिये म्पायोचित उपायों द्वारा धन संग्रह कर कोष-वृद्धि करते रहना चाहिये ॥१०॥ । तथा भाग:-कोराहीनं नृपं भस्पा चीनममि रोधलं । संत्यज्याम्पत्र गन्ति राकामिवावाजा: m.
प्पा-गोवमा-कोण्हीनो मनो खोका निभानपि पीडयेत् | sपदेशं वो यान्ति ततः सं प्रकार तिवारमा- राजा गन्दोs कोयल शीरे नृपस्म । कोशहीनो नृपो परमायाभिः परिपीस ..