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नीतिवाक्यामृत
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गर्ग' विद्वान् ने भी उक्त दुष्कृत्य (निरपराधी का बध) करनेका निषेध किया है ॥१॥
राजपुत्रोंके सुखी होनेका कारण, दूषित राज-नरमी, निष्प्रयोजन कार्यासे हानि व उसका दृष्टान्त द्वारा सर्मथन, राज्य के योग्य उत्तराधिकारी व अपराधोकी पहिचान
ते खलु राजपुत्राः सखिनो येषां पितरि राजभारः ॥८४।। अलं तया श्रिया या हियपि सुख जनयन्ती व्यासंगपरंपराभिः शतशो दुःखमनुमावयति ॥५॥ निष्फलो पारम्भः कस्य नामोदर्केण सुखात्रहः ॥८६॥ परक्ष' स्वयं कषतः कर्षापयतो वा फलं पुनस्तस्यैव यस्य तरत्रम् ॥८७॥ सुतसोदरसपत्नपितृव्यकुल्पदौहित्रागन्तुकेषु पूर्वपूर्वाभावे भवस्युत्तरस्य राज्यपदावाप्ति:AJEE|| शुष्कश्याममुखता वास्तम्भः स्लेदो विजम्भणमतिमा वेपयुः प्रस्खलनमास्यप्रेचणमावेगः कर्मणि भूमौ वानवस्थानमिति दुष्कृतं कुतः करिष्यतो वा लिंगानि ८६ ॥
अर्थ-वे राजपत्र निश्चयसे सुखी माने गये हैं, जिनके पिता राज्यकी पार अपने हाथ में लिये हो; क्योंकि वे (राजपुत्र) राज्य-शासम के कठिन कार्यभारको संभालने आदिसे निश्चिन्त रहते हैं ।
अत्रि विद्वान के श्लोक का भो यही अभिप्राय है ॥२॥
राआको उस राजनवमीसे कोई काम नहीं, जो उसे थोडासा सुखी करनेके उपरान्त अनेक चिन्ताओं द्वारा सेकड़ो कष्टोको उत्पन्न कर देवी हो ॥२५॥
कौशिक विद्वानने भी सुखकी अपेक्षा अधिक कष्ट देने वाली राजमानीको व्यर्थ बताया है ॥१॥
फलश न्य-निष्प्रयोजन (उद्देश्य व लाय-हीन) काये का प्रारम्भ भविष्यमें किसे सुखी पना सकता है ? किसी को नहीं । अाएव विवेकी मनुष्यको सोच-समझ कर कार्य करना चाहिये ताकि भवि. ध्यमें वह उससे सुखी होसके ॥८॥ जो मनुष्य इसरेके खेतको स्वयं ओवना है था मम्ब किसीसे जुवष। सा है, उसका परिश्रम व्यय है, क्योंकि ऐसा करने से उसे कुछमी नाम नहीं होता, क्योंकि उसमें जो कछभी धान्य-आदि को उपज होगी, वह इसे न मिलकर उस खेतके स्वामीको ही मिलेगो !!२७॥
कौशिक ' विद्वानके उद्धरण का भी यही अभिप्राय है ॥शा १–राजपत्र, २-राजाका भाई, ३--पटरानीको छोड़कर दूसरी रानीका पुत्र, ४-राजाका पाचा ५- राजाके वंशका पुत्र, ६-राजकुमारीका पुत्र और ७-बाहरसे श्राकर राजाके पास रहनेवाला-त्सक । तथा च गर्ग:-प्रनिष्टमपि कर्तव्य कर्म मिचिषण । तस्य जन्यमानस्य पञ्जात वत्स्वप' मा A 'सुव-सोदर-सापत्म-पितृष्य-कुम्य-चौहित्रागम्तुकेषु पूर्वपूर्वाभाषे प्रलोत्तम दायम्माप्ति इस प्रकार का पायार
भु० प्रतियों में है, जिसका अर्थ यह है कि सात सात व्यक्ति क्रमशः वायभागके अधिकारी है। १ तथा अनि:-येष। पिता पहेदत्र राज्यभार सुदुषहस | राजपुत्रा सुलान्यारच से भवन्ति सदैव हि ॥ ३ तथा च कौशिकः-अपसौम्पकना या च बहुसेगमवा भवेत् । पूषा सात्र परिक्षया समस्या सोक्ष यतः ॥ vaौशिक:-परमेसु यो बीज पविधिपति मन्वनीः । परिपत्रको वापि त्या जम्म हि. .