________________
नीतिवाक्यामृत
भागुरि विद्वान के उद्धरण का भी यही अभिप्राय है ॥ १ ॥
प्रत्युपकार की आशा न करके दूसरोंका उपकार करनेवाले का चरित्र नमसंहार करने योग्य है ॥ ३१ ॥ भागुरि व महात्मा भर्तृहरि ने भी तक सिद्धान्त का समर्थन किया है ।। "
मूर्ख मनुष्य का वैराश्य धारण, तपस्वी का काम सेवन, हरिद्र का शृंगार विधान, बेश्यास को पवित्रता और आत्मज्ञान- शून्य का वस्तु स्वरूपके विचारने का भामह, ये पांच कार्य किसके मस्तकशुभ( पीड़ाजनक ) नहीं है ? अर्थात समको पोहाजनक है। सारांश यह है कि वैराइको ज्ञानी, साधुको कामसेवन से विरक श्रृंगार चाहनेवाले को धनाढ्य, पवित्रता चाहनेवाले को बेश्या सेवन का स्यागी व वस्तु स्वरूप के विचारक को श्रात्मज्ञानी होना चाहिये || ३२ ॥ गदरपाद विद्वान् ने भी मूर्ख को वैराग्य धारण करना पाया है |
आदि तक पाँच बातों को पीड़ाजन
R
,
....... -446
जो मनुष्य निहत्थे व्यक्तिपर शस्त्र प्रहार और मुर्ख से शास्त्रार्थं करता है वह पंच महापाठकों (स्त्री-वच गोन्बध, माह्मणन्वभव स्वामी-बाद) के कटुक फल भोगता है, चत: बुद्धिमान् पुरुषको निहत्थे पर शस्त्रप्रहार और मूर्ख से बाद-विवाद नहीं करना चाहिये ॥
३३ ॥
विद्वानकेपा का भी यही अभिप्राय है ॥ १ ॥
प्रयोजन गए भी पुरुषका संसर्ग, स्वार्थ सिद्धिका इच्छुक, गृह-दासीसे अनुराग, वेश्या-संग्रह से हानि द दुराचारियोंकी चित्तवृति
उपाश्रुतिं श्रोतुमिव कार्यवशान्नीचमपि स्वयमुपसर्पेत् ||२४|| अर्थी दोषं न पश्यति ॥३४॥ गृहदास्पमिगमो गृहं गृहियां गृहपति व अस्थवसादयति ||३६|| वेश्या संब्रदो देव-द्विजगृहिणी- बन्धूनामुपाटनमंत्रः ॥ ३७॥ यहो लोकस्य पायें, यन्निजा स्त्री रतिरपि मनत निम्पसमा परगृहीता शुन्यपि भवति समासमा ||३८|
अर्थ- जिस प्रकार प्रयोजनवशं शुभ या अशुभ शकुना सुना जाता है, यदि शुभसूचक होता है तो वह कार्य किया जाता है, अन्यथा छोड़ दिया जाता है, उसी प्रकार बुद्धिमान मनुष्यको स्वार्थसिद्धि
१ तथा मागुतिः
गु
समस्या सामवेद अस्थामध्ये प्रति विम्॥१० ९ सया च भाहिः उपकारको यस्तु मामले में स्वयं पुनः उपकारः स भन्यो १० ३ तथा च भर्तृहरिः
स्वार्थान पर 12
!
सुवस्थितः निर्वस्व विद्यासित्वं कौश्वारस्य ॥१॥ महावि]12
स्थानियकारकः । वदि
शासन
A २०० प्रविसे संचित
।
th