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३४॥
सदाचार समुरेश ...........................................
भारद्वाज ने भी शोकको शरीर-शोषण करनेवाला बताया है ॥१॥
चिरकाल पयन्त शोक करनेवाला व्यक्ति अपने धर्म, अर्थ व काम पुरुषायों को नष्ट कर देता है. अतः इष्ट वस्तु के वियोगमें कदापि शोक नहीं प.रना चाहिये ॥२८।।
कौशिक ने भो शोकको धर्म-प्रादि त्रिवर्ग का नाशक बताया है ॥१॥
जो पुरुष दरिद्र होकरके भी इन्द्रिय-जन्य सुखों की कामना करता है, वह निम्य का पशु-सुक्ष्य है।
नारद ने भी विषय-लम्पटी दरिद्र पुरुष का जन्म निरर्थक बताया है ॥१॥
अपरिचित व्यकियोंसे प्रेमपूर्वक मधुर भाषण करना स्वर्गसे पाये हुए जन पुरुषोकर प्रतीक है ॥३०॥
गुरु" विद्वान ने भी मधुरभाषो पुनरको देवता बताया है ।क्षा
जिन पुरुषोंकी नोक परोपकार-आहिवारा स्थायी कीर्ति व्याप्त है उनके स्वर्गारोहण होजानेपर भी उन्हें जीवित समझना चाहिये ॥३५॥
नारद विद्वान् ने भी कीर्तिशाली दिवंगत पुरुषांको जीवित बाया है ॥१॥
जिस पुरुषने, शुरता, विद्वत्ता व परोपकार-मादि द्वारा उत्पन्न होनेवाली कीर्तिसे समस्त प्रक्षित तमको शुभ नहीं किया, उसका जन्म पृथिवी में भाररूप ही है ॥३२॥
गौतम ने भी यश-शून्य व्यक्ति को पृथिवीतलका भार बताया है | लोकमें शिष्ट पुरुषों द्वारा किया हुआ उपकार उनके महाकल्याण का कारण है ।।३।। जैमिनि विशामके सदरणका भी यही अभिप्राय है ॥१॥
अपनी रक्षा करानेकेलिये शरण में आये हुए (शरणार्थी) पुरुषोंको परीक्षार ( सम्जनता हुनता की जाँच) करना व्यर्थ है। अर्थात् उनकी परीक्षाके प्रपंच में न पड़कर सहसयता से बनकी सेवा मी चाहिये ।
जो लोग स्वार्थसिद्धि-पश इसरोकी भनाई करते हैं, ये महापापी है, महापुरुष नहीं ।
। काच भारद्वाजः-पत' या यदि बा मा परि शोकन सम्यते। तालाचाबका पर्याय नायकोषहता। • या कौखिक:-4: बोकारो त्रिवर्ग गादेखि सः । किपमा चिरकाल सस्माल दूरसास्वमेव ।। । चार मारदः परियो पो भवेन्मत्यों होमो विषयसेक्ने | वस्त्र जम्म भवेदम्पर्ष प्राडेर मारदा वर्ष ॥१॥ • या गुरु:-भपूर्वमपि यो रा सभापति बन्न । सहयः पुरुषस्ततोऽभावागतो दियः । . व नारकः-पवा अपि परिज या जीपम्बहोऊन भूतये । औषा सम्दिश्यते श्रीविदागाकर्षित । सपा . मोठमः-भुवनानि यगोभियों मस एमडीडवानि । भूमिभाव न स पुमानित पद ॥ • पाच मिनिअपकारो भो माया महाश्मना । सम्पाचाय प्रभूखा सो जाच भषय ॥m