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नीतिवाक्यामृत
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जै-िनि विद्वाम्ने भी इसी प्रकार कहा है ॥१॥
अपनी शक्ति को बिना सोचे समझे पराक्रम करनेसे किसकी हार नहीं होतो ! सभीको होती है ॥३॥
पलभदेव' विद्वमने भी सैन्य व कोण्होन राजाके पराक्रमका पराजयका कारण बताया है ||
शत्रु पर आक्रमण करने से ही उसका निमह नहीं होता, किन्तु युक्तियों-साम-दाम-श्रानि . प्रयोगहारा ही वह वश में किया जामकता है॥२४॥
गविहान के सगृहीत श्लोक का भी यही अभिप्राय है ॥२॥
मिष्कारण मागबज्ञा { कुपित । होनेवाले राजाके पास सेवक लोग नहीं ठहरते, अतः अपने सेवकोंके साथ स्वामोको प्रेमका बतोष करना चाहिये ॥२४॥
कदन व शोक से हानि, निन्ध पुरुष, स्वर्ग-फयुतका प्रतोक. जीवित पुरुष, पृथ्वीतहका भारकप, सुख-प्राप्तिका उपाय, (परोपकार) शरणागत के प्रति कर्तव्य व स्वार्थ युक्त परोपकारका दुष्परिणाम
न मृतेषु रोदितम्यमश्रुपातसमा हि किल पतन्ति तेषां हृदयेवकाराः ॥२६॥ अतीजे च वस्तुनि शोकः श्रेयानेच यस्ति तत्समागमः ॥२७|| शोकमात्मनि चिरमवासस्त्रिवर्गमिनु शोष. यति ॥२८॥ स किं पुरुषो योऽकिंचनः सन् करोति विषयाभिलाष ॥रह। अपूर्वेषु प्रियपूर्व सम्भाषणं स्वगच्युताना लिङ्गम् ॥३०। न ते मता येषामिहास्ति शाश्वती कीनिः ॥३॥ स केवलं भूभाराय जातो येन न यशोभिर्धेचलितानि भुवनानि ॥३२॥ परोपकारो योगिना महान् भवति श्रेयोबन्ध इति ॥३३॥ का नाम शरणागताना परीक्षा ॥३४॥ अभिभवनमत्रेसा परोपकारो महापातकिना न महासत्वानाम् ।।३५॥
मर्थ-मधुओं के स्वर्गवास होने पर विवेकी मनुष्यको करन छोड़कर सबसे पहले उनका देहिक मस्कार करना चाहिये, इसके विपरीत जो रोते हैं, वे उनके अग्नि-संस्कार में विलम्ब करने से उल्टा समें कष्ट पहुंचाते हैं। अतः रोनेवालोंके नेवसे निकलने वाला अभ-प्रवाह मानों मृत-पुरुषों के हदयपर गिरने बाये पहारे ही है२६॥
गर्ग" विदामने भी मृतधाधुओंके अग्निसंस्कार करने का विधान व गेनेका निषेध किया है ॥१॥
यदि शोक करने से मरा हुमा व्यक्ति या नष्ट हुई इष्टवस्तु पुनः प्राप्त हो सकती हो, तब उसके विषयमें शोक करना उचित है अन्यथा व्यर्थ है ।२५|| । बावजैमिनि:-मानाममायान्ते.प. स्नेहा स स्नेह अन्मते । साना सानासानाच हरिद्वारागसन्त्रिमः ।।। . पपा समय:- पर मो फाति मोन्नत मदमाश्रितः । विमः स निबन्न योदम्तो गजो यथा ॥१॥ । -सपा गई-नाकानया गृपते का यदि स्थात् सुदुर्लभः । थुक्तिद्वारेष संग्राको मद्यपि स्थावोत्कटः ।।m । समा गर्म:--मास्त पाप का प्रमो भुदक्ते पतो .याशः। तस्मान रोदित स्थाए डिया कायो
प्रयासः ॥