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राजरक्षा समुश
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स्वामीका आझापालन, शक्तिशाली व वैर-विरोध करनेवाले पुत्रों व कुटुम्धियोंका वशीकरण, तिसके साथ कवघ्नता करनेका दुष्परिणाम व अकुलीन माता-पिताका सन्तान पर कुप्रभाव
मतुरादेश न विकम्पयेत् ॥६३। अन्यत्र प्राणवाधाबहुजनविरोधपातकेभ्यः ॥६४i चलवत्पक्षपग्रिहेषु दायित्राप्तपुरुषपुरःसरो विश्वासो वशीकरर्स गूढपुरुषनिक्षेपः प्रणिधिर्वा ॥६॥ दुर्बोधे सुते दायादे पा सम्यग्युक्तिभिरभिनिवेशमवतारयेत् ॥६६॥ साधुखूपचर्यमाणेषु विकृतिभजनं स्वहस्ताकाराकर्षणमिव ॥६७॥ क्षेत्रबीजयोर्वेकृत्यमपत्यानि विकारयति ॥६॥
अर्थ-सेवककी प्राणनाशिनी तथा लोगोंसे वैर-विरोध उत्पन्न कराने वाली एवं पापमें प्रवृत्ति करानेवाली स्वामीकी आज्ञाको छोड़कर (उसे उल्लंघन करते हुए) दूसरे सभी स्थानों में सेवकको अपने स्वामीकी माझाका उलंपन नहीं करना चाहिये ।।६३-६४॥
अब राजाके सजातीय कुटुम्बी लोग सन्त्र (सैन्य) व कोशशक्तिसे बलिष्ठ होजायें, उस समय उनके वश करनेका पहला उपाय यह है कि वह अपने शुभचिन्तक व प्रामाणिक पुरुषोंको भम्र सर नियुक कर उनके द्वारा कुटुम्बियोंको अपने में विश्वास अस्पन करावे और दूसरा उपाय यह है कि उनके पास गुमचरोंको गिग करे, कहि न लसरत पनिार राहगो विदित होसकें। सारांश यह है कि उक्त उपायों द्वारा उनकी सारो चेष्टाए' विदित होने पर उनके वशीकरणार्य प्रयोगकी हुई साम-दान-पादि उपायोंकी योजनाए' सफल होंगी ।।६।।
शुक्र' विद्वान ने भी शक्तिशाली कुटुम्पियोंको अधीन करने के लिये उक्त दोनों उपाय पवाये हैं॥॥
नैविक मनुष्यको पुत्र व भार्या वगैरह फुटुम्बी जनोंका मूर्खतापूर्ण दुरामह मच्छी बस्तियों (पश्चि-युक्त पानों) द्वारा नष्ट कर देना चाहिये ॥६६॥
रेभ्य विद्वान् ने भी इसी प्रकार कहा है ॥
सपकार करनेवाले शिष्ट पुरुषों के साथ अन्यायका वर्ताव करनेवाला अपने हाथोंसे भंगारे खींचने समान अपनी हानि करता है। भर्यात् जिसप्रकार अपने हाथो से अग्निके अंगारों को खोबने से बन जाते है, इसीप्रकार आपकार करनेवाले शिष्ट पुरुषों के साथ अन्याय करनेसे अधिक हानि (मार्थिक पतिभावि) होती है ॥३॥
भागुरि विहानके वारणका भी यही अभिप्राय है ॥शा बाप शुर:-सपायादो भाप्तद्वारे वपाः। भवन्ति पातिगुप्तर परैः सम्बग्विशोषिताः ॥ ज्यामः -पुत्रो वा बायको पारि दिक्दो जागते यदा। पया सम्योपयुक्तस्तु सकायो तिमिच्नका ॥ ३ व्या व मागुमिरा-साना वियवात्यानां विधानि करोति यः । सोखिन सम्हा वाहस्तेनाग्निकावर 11