________________
7
पल समुद्देश
-
Praar..Dearinaam
--
---
-
.
.
.
H
.
WOMHHea
:
सेना के राज विरुद्ध होने के कारण, स्वयं सैन्य की देखरेख न करने से हानि और दूसरों के द्वारा नराने योग्य काये
सपमनवेषवं देयांशहरवं कालयापना व्यसनाप्रतीकारो विशेषविधावसंभावनं १ तंत्रस्य विरक्तिकारणानि ॥१७॥ स्वयमवेचणीय सैन्य परवेक्ष यमर्थतंत्राभ्यां परिहीयते ॥१८॥ माभितभरणे स्वामिसेवार्या धर्मानुष्ठाने पुत्रोत्पादने च खलु न सन्ति प्रतिहस्ताः ॥१६॥ अर्थ-राजा के निम्न लिखित कार्यों से, उसकी सेना उसके विरुद्ध हो जाती है।
स्वयं अपनी सेनाकी देख रेख न करना, उनके देने योग्य वेहन मेंसे कुछ भाग हड़प कर लेना, मा. जीविका के योग्य बेवन को यथासमय ने रेकर विसम्म से देना, उन्हें विपत्तिमस्त देखकर भी सहायता न भरना और मिष अवसरों (प्रोत्पत्ति, विवाह व स्यौहार भादि खुशो के मौकों) पर उन्हें धनादि से सम्मानिधम कामा ॥१७) इसलिये राजाको समस्त प्रयलों से अपनी सेना को सन्तुष्ट रखना चाहिये।
मायाज ' विद्वान ने भी राजा से संभाविरुद्ध होने के उपरोक्त कारण बताये हैं ॥१॥
बोराजा माणस्थाश स्वयं अपने से रेखरेख न करके दूसरे भूतों से राजा है, वह निःसवे. धन और सैन्य से रहित हो जाता है ॥१८॥
औमिनि' विधान का भी यही अभिप्राय ॥२॥
नैविक व्यक्ति को निरपव से सेवकों का भरणापोषण, स्वामी की सेवा,धार्मिक कार्यों का अनुश्खन और पुत्रों ने सत्पन्न करना, ये पार बा किसी दूसरे पुरुष से न कराकर स्वयं करना चाहिये |१||
एक विज्ञान ने भी उपरोक कार्य पूसरों से न कराने के लिये मिला है ॥१॥
सेपहिये देने योग्य धन, वेतन प्राप्त न होने पर भी सेवकों का फतेभ्य और सात बात का हायपरा समर्थन :
सावडेयं यावदामिता सम्पूर्सवामाप्नुवन्ति ॥२०॥ न हि स्वं द्रम्पमध्ययमानो राजा दण्डनीषः ॥२१॥को नाम सचेताः स्वगुरुचौर्यात्सादेत् ॥२२॥
पर्व-स्वामीको अपने अधीन सेवकों के लिये इतना पर्याप्त धन देना चाहिये, जिससे वे सन्तु ते मारणा
या विद्या ने भी सेवकों को भार्षिक करने से राजा की हानि बताई है ॥३॥ • नीजिगवायच..यो
- नि:-वर्ष मायोको प्रभादग्यो महीपतिः । तदम्प ओश्विनश्यति ॥ -पाय-अत्याला पोपले स्वामिसेरामबोजनम् । धर्मकृत्य सु तोमनि परपारवाण कारयेत् ॥ * मामा-माभिवायरस सम्बन्ले का हाल म स सपनो लोके अस्थाका पदस्वितः ॥१॥
NEE