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नीतिवाक्यामृत
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निजतनुज राज्यार्थं जघान राजानमङ्गराजम् ||३५|| विषालक्तक दिग्धेनाघरेण वसन्तमतिः शूरसेनेषु सुरतविलास, विषोपलिप्तेन मेखलामणिना घृकोदरी दशार्थेषु मदनावं, निशितनेमिना मुकुरे मदराक्षी मगधेषु मन्मथविनोद कवरीनिगूढेनासित्रेण चन्द्ररसा पाएका षु पुण्डरीकमिति ||३६|| अमृतरसवाप्य व श्रीजसुखोपकरणं स्त्रियः ||३७|| कस्तान कार्याकार्यविलीकनेऽधिकारः ||३८||
अर्थ- वशीकरण, उच्चाटन और स्वेच्छाचार चाहने वाली स्त्रियां कौन से अनर्थ नहीं करती ? सभी अनर्थ कर डालती है ||२४|| भारद्वाज' विद्वान ने भी स्त्रियों पर विश्वास न करने के लिये लिखा है || || इतिहास बताता है; कि यवनदेश में स्वच्छन्द वृत्ति चाहनेवाली मणिकुण्डला नामकी बहूरानी ने अपने पुत्र के राज्यार्थं अपने पति अक्षरा नामक राजाको विष-पि शराब के करलेसे मार वाला ||३|| इसीप्रकार शूरसेन (मथुरा) में बसन्तमवि नामकी स्त्रीने विषके आलतेसे रंगे हुए अधरोंसे सुरतविलास नामके राजाको वृकोदरीने दशार्ण ( भेलसा) में विषलिप्त करधनीके मणि द्वारा मदनाद राजाको, मदिराक्षीने मगधदेशमें तीखे दर्पण से मन्मथविनोदको और पांड्यदेश में चण्डर सा रानीने रुबरी ( केशपाश) में छिपी हुई छुरीसे पुण्डरीक नामके राजाको मार डाला ||३६||
स्त्रियां लक्ष्मीसे उत्पन्न होनेवाले सुखकी स्थान ( आधार ) हैं । अर्थात् जिसप्रकार लक्ष्मीके समागमसे मनुष्योंको विशेष सुख प्राप्त होता है; उसीप्रकार स्त्रियोंके समागम से भी विशेष सुख मिलता है एवं अमृत रससे भरी हुई वादियों के समान, मनुष्यों के विश्वमें आनन्द उत्पन्न करती हैं। अर्थात् जिसप्रकार अमृत रस से भरी हुई वादियां दर्शनमात्र से मनुष्यों के चित्तमें विशेष आनन्द उन्न कर देती हैं; उसीप्रकार स्त्रियांभी दर्शनादि से मनुष्योंक वित्तमें विशेष आनन्द उत्पन्न कर देती हैं
शुक विद्वान् ने भी इसी प्रकार स्त्रियोंका माहात्म्य बताया है ||२||
मनुष्यों को उनके कर्तव्य व अकर्तव्य देखने से क्या प्रयोजन ? अर्थात् कोई प्रयोजन नहीं। सारांश यह है कि स्त्रियां स्वाभाविक कोमल व सरलहृदय होती है, अतः बुद्धिमान् मनुष्यों को उनके साधारण दोषपर दृष्टिपात न करते हुए उन्हें नैतिक शिक्षा द्वारा सन्मार्ग में प्रवृत्त करना चाहिये ||३८|| स्त्रियोंकी सीमित स्वाधीनता, उनमें अत्यंत आसक्त पुरुष, उनके अधीन रहने वाले की हानि पवित्रताका माहात्म्य व उनके प्रति पुरुष का कर्तव्य
अपत्यपोषण गृहकर्मणि शरीरसंस्कारे शयनावसरे स्त्रीयां स्वातंत्र्यं नान्यत्र ||३६|| अविप्रसक्तेः स्त्रीषु स्वातंत्र्यं करपत्रमित्र पत्युर्नाविदार्यं हृदयं विश्राम्यति ||४०|| स्त्रीवशपुरुषो नदीप्रवाहपतितपादप इव न चिरं नन्दति ॥४१॥ पुरुषट्पुष्टिस्या स्त्री लक्ष्यष्टिरिव फमुत्सर्व न
1 तथा च भारद्वाजः कार्म स्वेच्छाचार सदा वाम्कृति योषितः । तस्मातासु म विश्वासः प्रकर्तव्यः कथंचन ॥१ २ तथा शुक्रः---सोमस्य कवियात्रामयोचनाः । यथा पीघूववारच मगच हादसा ॥१३