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राजरक्षा समुद्देश
३.
सबके साथ पक्षपात रहित एकसा धर्ताव करता है, उससे वे चैर-विरोध नहीं करती- उसके वशमें
रहती हैं ||१६||
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नारद' विद्वान्ने भी स्त्रियोंको अनुकूल रखनेके यही उपाय बढाये हैं ||१||
नैतिक पुरुष अपनी विवाहित सुन्दर पत्नियों से प्रेम व रूप स्त्रियों से ईर्ष्या न करे - प पातरहित एक सा व्यवहार रक्खे, अन्यथा रूप स्त्रियां विरुद्ध होकर उसका अनिष्ट-चिन्वषन करने नदी है ।।१७११
भागुरि विद्वान ने भी विवाहित स्त्रियोंके साथ पक्षपात रहित (एक्स) बर्ताव करने के लिये लिखा है |११||
जिसप्रकार रोग - निवृत्तिके लिये कडवो नीम औषधि के रूपमें सेवन की जाती है, उसी प्रकार अपनी रक्षा आदि प्रयोजनवश कुरूप स्त्री भी उपभोग की जाती हैं ||१८||
भारद्वाज' विद्वान्का भी इस विषय में यही मत है ५||
रजःस्रावके पश्चात् चौथे दिन स्नान की हुई स्त्री तीर्थ- शुद्ध (उपभोग करने योग्य) मानी गई है, उस समय जो व्यक्ति उसका स्याग कर देता है— सेवन नहीं करता वह अधर्मी है। क्योंकि उसने गर्भधारण में बाधा उपस्थित कर धर्मपरम्पराको अनुरूप चलानेवाली एवं वंश- वृद्धि में सहायक सम्जावि (कुलीन) संतानोत्पशि में बाधा उपस्थित की, श्रतएष चौथे दिन स्नान की हुई स्त्री की उपेक्षा न करनी चाहिये ||१६||
ऋतुस्नाव- चौथे दिन स्नान हुई अपनी स्त्रीकी उपेक्षा करने वाला व्यक्ति सन्तानोत्पत्ति में बाधक होने से अपने पूर्वजों का ऋणी है ||२०||
ऋतुकाल में भी सेवन न की जाने वाली स्त्रियां अपना वा अपने पतिका अनि कर बैठती हैं ॥२१ गर्न विज्ञान ने भी यही कहा है || १ ||
rea स्त्रियां अपनी मर्यादा का उल्लंघन कर अनर्थ कर बैठती है, भष्म ऋतुकालमें दिवाहित स्त्रियों का त्याग करने की अपेक्षा उनसे विवाह न करना ही कहीं अधिक श्रेष्ठ है ||२२||
भार्गव विद्वान के संगृहीत श्लोकका भी यही अभिप्राय है ॥१॥
जिसमकार बिना जोतने-बोनेवाले कृषक के लिये खेत व्यर्थ है, उसी प्रकार ऋतुकास में स्त्रीका
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१ तथा च भारत:- दानदर्शनसंभोग समं स्त्रीषु करोति यः । प्रभावेन विशेषं न विकम्बन्ति तस्याः ॥11॥ ९ तथा च भागरिः - समस्येने भ्यायाः स्त्रियोऽत्र विवाहिताः । विशेषो नैव कर्तव्यो मरे विमिता ॥१॥ ३ तथा च भारद्वाज:- दुभंगापि विरूपापि लेण्या कान्तेन कामिनी । वर्षौषधकृते निषः कोऽपि प्रदोषते ॥१॥ ●था चार्गाने च सम्प्राप्ते न भजेयस्तु कामिनी व खात्मा प्रस्वत स्वयं वा माराय पविम् ॥ १॥ भार्गवः— माहस्य वियते स्वीयामपमाने कृते सति । श्रविवाहो परस्वस्मान्न तूडानां विवर्तनम १||
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