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नीतिवाक्यामृत
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जिसप्रकार मगरफी डा स्वभावतः कुटिल होती है; असीप्रकार स्त्रियां भी स्वभावतः कुटिया होती है ॥शा
पल्लमदेव' विदामने भी स्त्रियोंको स्वभावतः कुटिल व भयंकर बताया है ॥२॥ विरुद्ध हुई स्त्रियों को वशीभत करनेका उपाय देवता भी नहीं जानते ॥१५॥ बल्लभदेव' विद्वानने भी इसीप्रकार कहा है ॥१॥
रूपवती, सौभाग्यवती, पवित्रता, मदाचारिणी एवं पुत्रवती स्त्रो पूर्वजन्म-कृत महान पुण्य प्राप्त होती है ॥शा
पारायणा । विद्वान के लदरा का भी यही अभिप्राय है ।।१।।
चंचल प्रकृति वाली स्त्री कामदेवके समान सुन्दर पति के पास रहकर भी दूसरे पुरुषको कामना करवी है ॥२॥
नारद ' विहान्ने भी पंचल प्रकृति वाली स्त्री को कुपथगामिनी बताया है।
पर पुरुषसे सम्पर्क न रखने वाली, पतिद्वारा काम सेवन-सुख व अभिलषित वस्तुएं राप्त करने पाली और ईडयोहीन पतिवाली स्त्री सदाचारिणी (पतिव्रता) रह सकती है, पर स्नेह, लज्जा और बर रखने बाली नहीं ॥१शा
जैमिनि ' विद्वान् का भी यही अभिप्राय है ॥२॥
स्त्रियों को अनुकूल रखने का उपाय, विवाहित व कुरूप स्त्रियों के साथ पति-कर्तव्य, स्त्रीमेवन का निरिक्षस समय, अनु कालमें स्त्रियों की उपेक्षामे हानि, व स्त्री रक्षा
दानदर्शनाभ्यां समवृत्तौ हि पुंसि नापराध्यन्ते स्त्रियः ॥१६॥ परिगृहीतासु स्त्रीषु प्रियाप्रियवन मन्येत ॥१७॥ कारणवशान्नियोऽप्यनुभूयते एवं ॥१८॥ चतुर्थदिवसस्नाता स्त्री तीर्थ तीर्थापराधी महानधर्मानुबन्धः ॥१६॥ ऋतावपि स्त्रियमुपेक्षमाणः पितृणामशभाजन ॥२०॥ अवरुद्धाः स्त्रियः स्वर्य नश्यन्ति स्वामिन वा नाशयन्ति ॥२१॥ न श्रीणामकर्तव्य मर्यादास्ति वरमविधाहो नोटापेक्षरणं ॥२२॥ अकृतरक्षस्य कि कलत्रेणाकृषतः किं क्षेत्रेण ॥२३॥
अर्थ-पिन स्त्रियों का पति दान (धम्त्राभूपण-प्रादि का दना) घ दर्शन-प्रेम पूर्ण दृष्टि द्वारा , नपा च बामदेव:-स्त्रियोऽतिमायुक्ता प्रथा दंष्ट्रा मवानवाः । ऋजस्व नागिरकान्त तायवाद
भीषयाः२ तथा मामयः-- चातुरः सृजता पूर्वमभायास्तम वसा । म सपांचमः कोऽपि गृशम्त येम योचितः ॥ । तथा च चारायसः-मुरूष सुभगं यदा सुचविघ्नं सुखाबिलं । यस्पेशं कसत्र' स्यात्पर्मपुपयफ हिवत् ॥॥ • सपा मारवा-कामदघोष त्यहरवा मुखप्रेमि पति चापम्पादाम्यते मारी विरूपांगमपीतरम् ॥
मा.मिनि:-अयस्वादककोपाथ प्रसारकामसंभवः । सर्चासामेल मालीगामेणार्यमवर ॥३॥
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