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गजरसा समुद्देश
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........................... मनुष्य प्रायः इसके विपरीत चलनेवाले भी देखे जाते हैं-वे उपकारी के पति भी कभी-कभी FIRST कर सलते हैं ॥१०॥
इतिहास बताता है कि एक समय किमी अटवी (बनी) के पास वगैरहसे पाच्छादित अम्पकूप में भाग्यसे प्रेरितहुए पन्दर, सर्प और शेर ये तीनों जीवजन्तु व श्राक्षशालिक-एक जुझारो व सुनार ये दोनों पुरुष गिर पड़े। परचात् किसो का सायन नामके पान्थने उन्हें उस अन्धक्षसे बाहिर निकाला। उपत हुए उन पात्रों से बम्बर, सर्प, शेर सुनार उसका अनिष्ट न कर ससको अझोपरान्त अपने निति स्थानको चले गए । जुपारी कृतघ्नो होनेके कारण उस पान्यसे कपटपूर्ण व्यवहारांसे मित्रता कर उसक धनको हरया करनेकी इच्छा उसके साथ हो लिया और अनेक प्रामों प नगरोंमें भ्रमण करता रहा। पश्चात् एक समय विशाला नामकी नगगेके शुन्य मन्दिर में जा पाथ सो रहा था, तब इस जुधारोने मौका पाकर उसके धनको हरण कर लिया। इससे सिद्ध होता है कि तिर्यच मो कता होते हैं पर मनुष कभी इसके विपरीत फतनी भी होते देखे गये है।।
इसी प्रकार गौतम नामके किसो तपस्वी ने नादीजंघ नामक अपकारोको स्वार्थवश मार राना। (बह कथानक अन्य प्रन्यों से जान लेना चाहिये) ॥११॥
इवि मित्रसमुद्देश।
२४ राजरक्षा-समुद्देश
* राजा की रक्षा, उसका उपाय,अपनी रणार्थ पासमें रखने के योग्य व अयोग्ब पुरुषराशि रक्षिते सर्व रहित' भवस्यतास्वेभ्यः परेभ्यश्च नित्यं राजा रचितम्यः ॥१॥ भतएवोत' नयषिद्रः-पितृपैतामह महासम्पन्धानुबद्ध शिक्षितमनुरक्त सतकर्मण घ उनं भासन्न कुर्वीत ॥२॥ भन्यदेशीपमकृतार्थमान स्वदेशीयं चापकृत्योपगृहीमासन्न न हरी ॥३॥ चित्तविकतास्स्यविषयः किन्न भवति मातापि रापसी ॥॥
भये-जा की रक्षा होमेसे समस्त राष्ट्र सुरक्षित रहता है, इसलिये इसे अपने पुटुम्पियों तक सत्रुओं से सदा ममनो रक्षा करनी चाहिये ॥१॥
भ्य' विद्वान ने भी राबरवा के विषय में इसी प्रकार कहा है |शा इसलिये नीतिहोंने कहा है कि राजा अपनी रणार्थ ऐसे पुकाको नियुक्त करे, जो राम राम सभ्यः-किने भूमिकाये नुसार गयेयः पौबहिन पोम्बरमा बस्न सारंग आवते ।।