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बा समुद्देश
राजाओं की विजयके प्रधान कारण हाथोही होते हैं; क्योंकि युद्धभूमिमें वह शत्रुकृत हजारों प्रहारों से ताड़ित किये जाने पर भी व्यधित न होकर अकेलाही हजारों सैनिकोंसे युद्ध करता रहता है |गशा ' विद्वान्ने युद्ध में विजय प्राप्तिका कारण हामीही माना है ||१||
शुरू"
प्रचारकेही कारण प्रधान नहीं माने जाये परन्तु निम्नलिखित चार
हामी जाति, इल, वन और गुणों से मुक्य माने जाते हैं
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२६७
31+4 शाम
(१) उनका शरीर हृष्ट-पुष्ट व शक्तिशाली होना चाहिये; क्योंकि यदि वे बलिष्ठ नहीं हैं पौर नमें अन्य मन्द व मृग आदि जति, ऐरावत आदि कुल, प्राच्य आदि मन, पर्वत व नव-यादि प्रचार के पाये जाने परभी वे युद्ध-भूमिमें विजयी नहीं होसकते । (२) शीर्ष, पराक्रम- दायियों का पराक्रमी होना अत्यावश्यक है क्योंकि इसके बिना भाजली हाथी अपने ऊपर मारूद महाबतके साथ २ युद्धभूमि में शत्रुओं द्वारा मारडाले जाते हैं । (३) उनमें युद्धोपयोगी शिक्षाका होनाभी अनिवार्य है, क्योंकि शिक्षित हाथी सुद्धमें विजयी होतेहैं, जबकि अशिक्षित भरने भाग २ महाबलको भी ले भदा है और बिगड़ जाने पर बलटकर अपने स्वामीकी सेना कोभी रौंद डालता है । (४) युद्धोपयोगी कारण सामग्री रूप कश्मी:- हाथियोंमें युद्धोपयोगी कसंव्यशीलता आदि सामग्री (कठिन स्थानोंमें गमन करना, शत्रुसेना का उम्मुलन करना आदि) का होनाभी प्रधान है; क्योंकि इसके बिना के विजय भी प्राप्त कराने में समर्थ होते हैं ||४||
मल्लभदेव" विद्वान् ने भी हाथी के शक्तिशाली होनेके विषय में इसी प्रकार कहा है ।
अशिक्षित हाथी व उनके गुण
अशिचिता हस्तिनः केवलमर्थप्राणहराः ||२|| सुखेन यानमारभरका परपुरावमर्दनमरिष्यूहविघातो जज्ञेषु सेतुबन्धो वचनादन्यत्र सर्वं विनोद हेतवश्चेति हस्तियाः ||६||
अर्थ – युद्धोपयोगी शिक्षा शून्य हाथी केवल अपने स्वामीका मन व महावत आादिके भाव न कर देते हैं। क्योंकि बनके द्वारा विजय-लाभ रूप प्रयोजन-सिद्धि नहीं होता, इससे वे निरर्थक वास द आदि भक्षण द्वारा अपने स्वामीको आर्थिक दृष्टि करके अपने ऊपर चारूद महाबतके मी माया से ले है एवं विगड़ जाने पर उलट कर अपने स्वामीकी सेनाको भीद डाळवे हैं || ||
नारद' विद्वान्ने भी अशिक्षित हाथियोंके विषय में इसी प्रकार कहा है ||१||
हाथियोंमें निम्न प्रकार गुण होते हैं । १ कठिन मार्गको सरलता पूर्वक पार कर जाना। २-शत्रु-य हारोंसे अपनी तथा महावत की रक्षा करना। ३- शत्रु नगरका कोट व प्रवेश द्वार
कर उसमें
१ सया च शुकः--पहल योधयत्वको मतो याति न च स्वयं महारै पंडुभिस्तस्मादस्तिको
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२ वथा च वामदेवः- मातिशयनमारेर चतुर्विधेः । युक्तोऽपि वा
५ वा भारदः -- शहला राजा रस्म प्रभवन्ति महीभृतः । कुर्वन्ति भगवन् ॥१४
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