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नोतियाक्यामृत
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जैमिनि विद्वान उद्धरण का भी यही अभिप्राय है ॥१॥
प्रजाको पीडित करनेसे हानि, पहिलेसे टेक्ससे मुक्त मनुष्यों के प्रति राजकसंख्य, मर्यादा उन्लंघन से हानि, प्रजाकी रक्षा के उपाय व न्यायसे सुरक्षित राष्ट्र के शुल्कस्थानोंसे लाभ
सर्ववाघा प्रजाना कोशं पीडयति ॥१७॥ दत्तपरिहारमनुगृह्णीयात् ॥१८॥ मर्यादातिक्रमेण फलवत्यपि भूमिभवत्यरण्यानी ॥१६॥ क्षीण जनसम्भावनं तृणशलाकाया अपि स्वयमग्रहः कदाचित्किचिदुपजोवनामांत परमः प्रजानां वधनोपायः ॥२०॥ न्यायेन रचिता पण्यपुटभेदिनी पिष्ठा राज्ञां कामधेनु:४॥२१॥
अर्थ-जो राजा अपनी प्रजाको समस्त प्रकारके कष्ट देखा है-अधिक टेक्स आदि लगाकर प्रजाको पीड़ित करता है, उसका खजाना नष्ट हो जाता है । क्योंकि पीड़ित प्रजा असंतुष्ट होकर एकदम राजास यगायत कर देती है जिसके फलस्वरूप राजकीय खजाना खालो हो जाता है ||१||
गर्ग' विद्वान्ने भी टेक्स द्वारा प्रजाको पीड़ित करनेवाले, राजाकी इसीप्रकार हानि निर्दिष्ट की है।
राजाने जिनको पयमें टेक्स लेनेसे मुक्त कर दिया है, उनसे वह फिरसे टेक्स न लेकर उनका अनुग्रह करे, क्योंकि इससे उसकी वचन-प्रतिष्ठा व कीर्ति होती है ॥१८॥
नारद विद्वान्के उद्धरणका भी यही अभिप्राय है ॥१॥
मर्यादा-लोकव्यवहारका उल्लंघन करनेसे धन-धान्यादिसे समृद्धिशासी भूमिभो जंगल समान फल-शून्य हो जाती है। अतः विवेकी मनुष्य व राजाको मर्यादा (नैतिक प्रवृत्ति) का उल्लंघन नहीं करना पाहिये ||१ १ तथा जैमिनिः-सस्यामा परिपक्वानां समये यो महीपतिः । सैम्यं प्रचारशच दुर्भिस प्रकरोति सः ॥१॥
सर्थ चापाः प्रजानां को कति ऐसा पाठान्तर मू० प्रतियों में है, जिसका अर्थ यह है कि पूर्व में कही (पकॉक खेतों मेंसे सेना निकासमा-मादि) व म कही दुई पापाचों-प्रजाको दी गई पोदामों-से प्रजाकी सम्पत्ति मह होती है ।१॥
षय संप्रहः ऐसा पद म प्रतियों में है जिससे उक्त सूत्रका पह भय होता है, कि जिस प्रकार तासंग्रह मो कभी उपयोगी होता है, उसी प्रकार परिव म्यक्ति भी कभी उपयोगी होता है, प्र०एव राजाको दरिम (मिर्धम) प्राको भनसे सहापणा करनी चाहिये, शेपार्थ पूर्ववत् समझना चाहिये । xमायेच सरिता पपमपुटमेदिनी राह कामधेनुः इस प्रकारका पाठ भू० प्रतिशे में है, जिसका अर्थ यह है कि बार सरषित महायोग्य टेक्स-मादि लिया जाता है और म्यापारियोंके क्रय-विक्रय योग्य वस्तु से म्याप्त नगरी काम अनु समान राजामोंके ममोरप पूर्ण करती ॥२१॥
या पग:-प्रजामा पोवनाहि न प्रभूतं प्रजायते । भूपसीना तो माघ मसं येन तडवेत् ॥१५ । सथा र नारवः-प्रकस ये कवा पूर्व वा मासो न हि । निझवाक्यप्रतिधार्थ भभुजा कीर्तिमगाता ॥