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नीतिवाक्यामृत
अर्थात्ः– राजा ज्यादा धान्यकी उपजाले बहवसे प्राम जो कि उसकी चतुरंग सेना (हाथी, घोड़ा, रथ और पैदन) की वृद्धिके कारण हैं, उन्हें किसी को न देखे ||२२||
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शुक' विद्वानके उद्धरणका भी यही अभिप्राय है ॥५॥
बहुतसा गोमण्डल - गाय-बैलोंका समूह, सुषएं और दुगी-टेक्स (सान) आदि द्वारा शप्त हुआ धन राजकोषकी वृद्धिका कारण है ||२||
गुरु विद्वान्ने भी राजकोषको वृद्धि उक्त कारा निरूपण किये हैं ॥१॥
राजा द्वारा विद्वान् और ब्राह्मणोंके लिये इतनी थोड़ी भूमि दानमें दी जानी चाहिये, जिसमें गायके रहानेका शब्द सुनाई पड़े; क्योंकि इतनी थोड़ी भूमि देनेसे दाता और पात्र (महण करने वाला) को सुख मिलता है। अर्थात दावा भी दरिद्र नहीं होने पाता एवं कोई राजकीय अधिकारी उतनी थोड़ीसी जमीन पर कब्जा नहीं कर सकता ||२४||
गौतम
विद्वामके उद्धरणका भी यही अभिप्राय है ||१||
क्षेत्र, तालाब, कोट, गृह और मन्दिरका दान इन पांच चीजोंके दानोंमें आगे आगेकी चीजोंका दान पूर्वके दानको वाधित कर देता है । अर्थात् हीन- (गौण) समझा जाता है । परन्तु पहिली वस्तुका पाद आगेकी वस्तु दानको डीन नहीं करता । अर्थात् क्षेत्र (खेत) के दानकी अपेक्षा बालाबका दान उत्तम है, इसी प्रकार निन्दानसे कोट-दान, कोट-दानसे गृह-दान और गृह-दानसे मन्दिरशन उत्तम और मुरुष है। परन्तु की वस्तुओंके दानकी अपेक्षा पूर्वं वस्तुका दान उच्चम वा सुक्ख नहीं है; क्योंकि आगे २ वस्तुओं का दान विशेष पुष्यगंधका कारण है ।
(२) अर्थ - विशाल खाली पड़ी हुई किसी जमीन पर भिन्न २ पुरुषोंने मित्र ६ समयोंमें बेठे, कोट, घर और मन्दिर बनवाये पश्चात् इनमें अपने स्वामित्व के विषय में वाद-विवाद हो गया। उनमें से धर्माध्यक्ष (न्यायाधीश) किसको अधिकारी (स्वामी) निश्चित करे ? अर्थात् सबसे ब किसी एक पुरुषने किसी त्वानको भूमिको खाली पड़ी हुई देखकर वहां खेत बना लिये। पश्चात् दूसरेने उस पर कोट खड़ा कर दिया और तीसरेने उस पर मकान बनवा जिया, और चौथेने मन्दिर निर्माण करा दिया वत्पश्चात् उन सबका आपस में वाद-विवाद प्रारम्भ हो गया। ऐसे अवसर पर आगे २ की ब बनाने वाले मनुष्य न्यायोचित मुख्य अधिकारी समझे जांयेंगे । अर्थात् खेत बनाने वाले की अपेक्षा फोट बनाने वाला, कोट बनाने वालेकी अपेक्षा गृह बनाने खाना, और गृह बनाने वालेकी अपेक्षा मन्दिर बनाने वाला बलवाद और प्रधान अधिकारी समझा जावेगा । परन्तु पूर्व २ की चीजें बनाने वाला नहीं भावार्थ:--- उनमें से मन्दिर बनाने वाला व्यक्तिका उस जमीन पर पूर्ण अधिकार सममध जायेगा। पूर्व वस्तु बनाने वाले का नहीं
इति जनपन समुद्देश ।
१ तमाशुकः- चतुरंग बेडुमष्टप्रामेषु तुष्यति । बुद्धिं याति म देवास्ते कस्वभिद सरवदा पदः ॥1॥ गुरुः- प्रभूखा पेयो बस्न राष्ट्र भूपस्थ धर्वदा । हिरणबाब तथा पशुपुकोशामि गवः- देवद्विजमा भूः प्रभा खोप नाम्पाद । दातुरच बाह्मवस्यापि सुमा मोराच्य माना ॥१॥
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