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२६.
नीतिवाम्यामृत
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मोदक-चारों ओर नदियों से वेष्टित व मध्य में टापु समान विकट स्थान अथवा बड़े बड़े तालाबों से वेष्टित मध्य स्थान को 'श्रीदक' कहते हैं।
पार्यतः-बड़े पत्थरों या महान चट्टानों से घिरे हुए अश्या स्वयं गुफाओ' के प्राकार बने हुए विकट स्थान 'पावत दुर्ग' हैं।
धान्वनः-जल व घास-शून्य भूमि या ऊपर जमीन में बने हुए विकट स्थान को 'भाम्बन दुर्ग' कहते हैं।
धन दुर्गः-चारों ओर घनी कोचड़ से अथवा कांटेदार मादियों से घिरे हुये स्थान को 'वनदुर्ग' कहते हैं।
- और पर्दा दुर्गा नो एवं धाम्बन और वन-दुर्ग आददिको की रक्षा के स्थान है और राजा भी शत्रु कृत हमलों आदि आपत्ति के समय भागकर इन दुर्गों में श्राश्रय ले सकता है।
(२) आहार्यदुर्ग-कृत्रिम उपायों द्वारा बनाये हुए शत्रुओं द्वारा आक्रमण न किये जाने वाले, युद्धोपयोगी वाई-कोट धादि विकट स्थानो' को 'माहार्य दुर्ग' कहते हैं।
दुर्ग:विभूति व दुर्ग शून्य देश तथा राजा की हानिवैषम्यं पर्याप्तावकाशो यवसेन्धनोदकम्यस्त्वं स्वस्य परेषामभाषो बहुधान्यरससंग्रहः प्रवेशापसारीक वीरपुरुषा इति x दुर्गसम्पत् अन्यद्वन्दिशासावत् ॥३।। अदुर्गो देशः कस्य नाम न परिभवास्पदं ॥४॥ प्रदुर्गस्य राक्षः पयोधिमध्ये पोतच्युतपक्षिवदापदि नास्त्याश्रयः ॥५॥
अर्थ:-निम्नप्रकार दुर्ग की विभूति-गुण है जिससे विजिगीषु रावत उपद्रवों से अपना राष्ट्र सुरक्षित कर विजयश्री प्राप्त कर सकता है।
१-दुर्ग की जमीन-पर्वत आदि के कारण विषम-पीनीचो व विस्तीर्ण (विस्तार युज) हो। २-जहाँपर अपने स्वामी के लिये ही धाम, धन और जल बहुतापससे प्रामोसा पर हमला करने पाने शत्रों के लिये नहीं।३-जहां पर गेहूँ-पावन-भादि माद नमक; घी बगैर रसोंग प्रचुर संग्रह हो । ४-जिसके पहिले दरवाजे से प्रचुर धाम्य और रसों का प्रबेश एवं दूसरे से निकासो होतो हो।५-जहां पर बहादुर सैनिकों का पहरा हो । यह दुर्ग को सम्पचि जाननी चाहिये, बहां पर 1 सम्पत्ति नहीं है, उसे दुर्ग न समझ कर जेलखाने का सामान भपने स्वामी का पात समझना चाहिये क्षा
के प्रवेशासाहो' इसमकार भू० प्रवियोंमें पा जिसका अर्थ यह दुर्ग इवना मन से पास से जिसमें अनुमों का प्रदेशमा सके।
x माचार 'प्रत्येक प्राकारगिरिसमागम दुर्गवर्य स्ववि' हया पिर मूत्रपितों में जिसन पर्व पर है कि प्रत्येक परकोटा में रक्त चीप मान हो एवं दो को सिरों पोवा चाहिये।