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नीतिवाक्यामृत
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समस्त प्रकृति के लोग (मंत्रो-आदि) राजाके कारणसे ही अपने अभिलषित अधिकार प्राप्त करनेमें समर्थ होते हैं, राजाके बिना नहीं ॥४॥
गर्ग' विद्वान्ने भी कहा है कि 'समस्त प्रतिवर्ग राजाके रहनेपर ही अपने अधिकार प्राप्त कर सकता है, अन्यथा नहीं ।। १॥
जिन वृच्चोंकी जड़ें उखड़ चुकी हों, उनसे पुष्प-फलाविकी प्राप्तिके लिये किया हुमा प्रयत्न क्या सफल होसकता है। नहीं होसकता, उसीप्रकार राजाके नष्ट होजानेपर प्रकृतिवर्ग द्वारा अपने अधिकारप्राप्ति के लिये किया हुआ प्रयल भी निष्फल होता है ।। ५ ।।
भागुरि* विद्वान्ने भी राज-शून्य प्रकृतिको अभिलषित अधिकार प्राप्त न होनेके विषय इसीप्रकार कहा है ।।१।।
झूठ बोलनेवाले मनुष्यके सभी गुण (झान-सदाचार-आदि) नष्ट हो जाते हैं॥६॥
भ्य विद्वान्ने भी कहा है कि 'मिध्याभाषी मनुष्यों के कुलीनता, शील ष विद्या प्रभृति समस्त गुण नष्ट हो जाते हैं ॥१॥
__ धोखेबाजोंके पास न सेवक ठहरते हैं और न वे चिरकाल तक जीवित रह सकते है ; क्योंकि धोखेबाजों द्वारा सेवकों को वेतन नहीं मिलता, इससे उनके पास सेवक नहीं ठहरते एवं जनसाधारण उनसे द्वेष करते हैं, अतः ये असमयमें मार दिये जाते हैं; अतः वे दीर्घजीवी भी नहीं होते मनः शिष्ट पुरुषोंको धोखा देना छोड़ देना चाहिये ॥ ७॥
मागुरि विद्वान्ने भो धोखेबाजों के विषयमें इसीप्रकार कहा है ॥१॥
लोक-प्रिय पुरुष, उत्कृष्टदाता, प्रत्युपकारसे लाभ पूर्वक सपा परोपकार, प्रत्युपकार-शून्यकी कड़ी आनोपना व स्वामीको निरर्थक प्रसन्नता--
स प्रियो लोकानां योऽर्थ ददाति ।। ८॥
१व्या न गा-स्वामिना विद्यमानेम स्वाधिकारानवाप्नुयात् । सः प्रहसयो मेव विना हेन समानुः ॥ ॥ १ तथा च भाग:-विनमूषु पहेषु यथा मो पल्लवादिकम् । प्रथा स्वामिविहीमाना प्रकृतीनां न पामिनवम् ।। ३ तथा प रैम्पा कुलातीजोजवा ये व गुया विधादमोऽपराः । से सर्वे नाशमायाम्ति ये मिभ्यागमामकाः ॥1॥ १ तथा च मागुरिः-या पुमान् पंचनासस्तिस्य न स्थात् परिग्रहः । म चिर मीवित तस्मात् सन्निस्त्याव्य हिचनम्