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अमात्यसमुरेश
Anatomanen
वे सर्वज्ञ हैं, परन्तु इसके विपरीत-कर्त्तव्यबोध न कराने वाले–घड़े में वर्तमान दीपक की तरह चल स्वयं विद्वत्ता युक्त हैं। वे मूर्ख है ॥शा'
जिस प्रकार उपयोग-शून्य पीने के अयोग्य (वारे) बहुत समुद्रजख से क्या लाभ १ कोई गम नहीं, उसी प्रकार विद्वान के कर्तव्य ज्ञान कराने में असमर्थ प्रचुर झान से भी कोई लाभ नहीं ॥६॥ शुक्र' विद्वान ने भी इसी प्रकार कहा है ॥११॥
इति स्वामि-समुद्देशः।
१८ अमात्य-समुद्देश सचिव-(मन्त्री) माहात्म्य, मंत्री के बिना राजकार्य हानि प रष्टान्तमाता द्वारा समर्थनचतुराऽस्ति यू ते नानमात्योऽपि राजा किं पुनरन्यः ॥ १॥
कस्य कार्यसिद्धिरस्ति ॥ २॥ नाकं चक्रं परिभ्रमति ॥३॥ किमयातः सेन्धनोऽपि पहिचलतिः ॥ ४ ॥ . अर्प-जब शतरम्ज का बादशाह मन्त्री के बिना चतुरङ्ग सेना (शतरब्ज के हाथी, प्यादे, भावि) सहित होकर भी उसका बादशाह नहीं हो सकता-अर्थात् उस खेल के पादशाहमादि प्रतिदियों ने परास्त कर विजय-श्री प्राप्त नहीं कर सकता, क्ष क्या पृथ्वीपति (राजा) हस्ति, भरव भादि पतुरङ्ग सैन्ययुक्त होकर के भी बिना मन्त्री के राजा हो सकता है । अर्थात् नहीं हो सकता ॥शा
या :-कितया विषया काप मा र बोधयते पराम् । भूतरचापि कि सोवन्य चा गः ॥॥ A चतुरनुवोऽपि मानमात्यो राजास्ति, कमरेका' इसप्रकारका पाठातर मु० प्रतियों में वर्तमान है, परन्त इसमें
रावर वादगाह कप स्पा द्वारा प्राविषयों का समर्थन नहीं है, पार्य पूर्ववत है। B'प्रात: सेजनोऽपि इत्यादि पाान्तर मु. म. प्रतिमें है, जिसका अर्थ यह है कि जिसप्रकार प्रति प्रबर पारंग युज प्रालिको शुभा देवी सीप्रकार प्रतिस-बिरुद मंत्री भी राज्य-विन पेवा है-सम्पादक