________________
२७५
नीतिवाक्यामृत
aa......
.....
_ रिश्वतसे संचित धनका अपायपूर्वक ग्रहण व अधिकारियोंको धन व प्रतिष्ठाको प्राप्तिनित्यपरीचणं कर्मविपर्ययः प्रतिपत्तिदान नियोगिष्वर्थोपाया||१५|| नापीडिता नियोगिनो दश्वथा इवान्तःसारमहमन्ति ॥५६॥ पुनः पुनभियोग नियोग भपंतीनी वसधाराः।।५७॥ सभिष्पीडितं हि स्नानवस्त्रं किं जहाति स्निग्धताम् ॥५८|| देशमपीड़यन् बुद्धिपुरुषकारा. भ्यो पनिवन्धमधिकं कुदमर्थमानो लभते ॥५६॥
अर्थ:-राजा अधिकारियोंसे रिश्वत द्वारा संचित धन निम्नप्रकार तीन स्पायर्यास प्राप्त कर सकता है । निस्य परीक्षणा-सदा अधिकारियों की जांच-पड़ताल करना। अर्थात् गुप्तचरों द्वारा उनके दोष जानकर कड़ी सजा देना। कम विपयेय उन्हें उच्च पदोंसे पृथक कर साधारण पदों पर नियुक्त करना, जिसमें वे भयभीत होकर रिश्वत से संचित धन बताने में बाध्य होसके।३ प्रतिपत्तिदान-अधिकारियों के लिये छप. यमर आदि बहुमूल्य वस्तुएं भेंट देना; से वे ही रो रितगत द्वारा गृहीत गुप्त धन दे देखें ।।
गुरु विद्वान्' ने भी रिश्वत द्वारा गृहोत-धन प्राप्तिके उपायोंके बिषयमें इमी प्रकार कहा है।
अधिकारी लोग दुष्ट व्रण (पके हुए दृषित फोहे) समान विना साइन-बंधन आदि किये गृहमें रक्खा हुआ रिश्वतका धन नहीं बताते अर्थात् जिस प्रकार पके हुए दूषित फोड़े शस्त्रादिद्वारा छेदन भेदन किये बिना भीतर का दूषित रक्त नहीं निकालते उसी प्रकार अधिकारी-गणभी कड़ी सजा पाये बिना रिश्वतका धन नहीं बताते ॥६|
नीतिकार बाणिक्य ने भी अधिकारियोंद्वारा अप इत धन प्राप्त करनेके विषयमें इसीप्रकार कहा है ।।।।
अधिकारियों को बार बार ऊंचे पदोसे पृथक करके साधारण पदोंमें नियुक्त करनेसे राजाओंको उनके द्वारा गृहीत रिश्वतका प्रपर धन मिल जाता है। क्योंकि वे पदच्युत आदि होनेके भयसे रिश्वत धन दे देते हैं ।
केवल एक बार धोया हुआ स्नान-वस्त्र (धोती वगैरह) क्या अपनी मलीनता छोड़ सकता है ? नहीं बोद सकता। अयोत् जिस प्रकार नहानेका कपड़ा पार २ पछाड़कर धोनेसे साफ होता है उमी प्रकार अधिकारी बगेमी वार र दखित किये जानेसे संचिव रिश्वत मादिका गृहीत धन दे देता है |
शा' विद्वानके उद्धरण का भी यही अभिप्राय है ।।
जो अधिकारी (ममात्य आदि) देशको पीड़ित नहीं करता (अधिक चुगी व टैक्स द्वारा प्रजाको कष्ट नहीं देता) : अपनी बुद्धि एटुता व सद्योगशीलता द्वारा राष्ट्रके पूर्व व्यवहारको विशेष उन्नतिशील
Man
समा. गुरु-बिदाम्पत्तो बाभो मिपोणिजनसम्भवः । अधिकारविपर्वासार प्रतिपस्यापरः ॥1॥
बाबाक्य:-शान्याधिकारियो विचमन्त:सार पम्ति नो । निपीतेनवे यादगाछनचा इ॥॥ ३ तथा च पक:-यपाहि स्मानज वस्त्र सकर प्रचालित महि । मिर्म सान्नियोगी व सकद्दण्ड न एकति ॥